Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 64
________________ श्रष्टप्र. उरिकवर जाव कवलं ता दिछो मुणिवरो य सो पुर। संगहियं जं जत्तं तुझेणं तस्स तं दिन्नं // 3 // अवरं च गदेऊणे पुणरवि जा चुंजिकण माढत्तो / ता अन्नो विहु समणो समाग थिविररूवेणे३० // 30 // तस्सविजं संगहियं तं दाजं जंजिऊण माढत्तो।ता अन्नोवि य सहसा समाग खुड्डगो समणो 35|| जा नीसेसं जत्तं जत्तीए तस्स देउमाढत्तो / ता पच्चरकीहोलं पत्नण तं देवरूवेणं // 40 // 8 नोलो परितुछोहं जिणवरधम्ममि सुझबुद्धीएँ। पत्नणसु जं मणशं तं तुह सवं पणामेमि॥४॥ जश् देव देसि तुझो मस वरं नणसोहली तुंछो। ता दारिदंतमोहं पहणसु मह अबसूरेणं // 4 // एवं हवउत्ति सुरेनणिकण विणिग्गएँ निययगणं। तेणवि सुरवुत्तंतो दश्याए साहि सबो॥३॥ तीएविहु सो नणिर्ड धन्नो तं जस्स जिणमए जत्ती / जश्नत्तीए तुछो देवोविहु तुह वरं देश॥४॥ अणुमोयणंपि" तीए नाव विसुद्धीअङियं पुन्न।अणुमोयणयावि ज जीवो नवपंजरंदलश्४५ श्तो खेमपुरीए धुश्रा सिरिसूरसेणनरवश्णो / विन्दुसिरी नामेणं विण्हुसिरीचेव पच्चरका॥४६॥ तीए गुणाणुरूवं वरमलहंतो नरेसरो नेवें / सवेवि नूमिपाले मेलित्तु सयंवरं कुण // 4 // विरयएँ परममंचे तीए नयरीबाहिरुजाणे / कंचणमणिसोवाणे देव विमाणुव्व रमणीए // 4 // &aa 1 गहिऊणं / 2 नुंजिचं समाढत्तो। 3 अररूवेण / 4 जाव तुंजए अवरं / 5 खुल्लगो। 6 दाउमाढत्तो। | तुनजत्तीए / 8 देवो / ए दालिद्द / 10 विणिग्ग: / 11 अणुमोअणा / 12 अणुमोयणा जह्मा / 413 सके / 14 दूएहिं / 15 मेलेवि / 16 विरएवि। // 3 // Jun Gun Aaradhak IAC.GunratnasuriM.S.

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