Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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________________ कुसुम प्रजा. ॥श्या अष्टप्र. संसारविरत्तो विहु पव्वळ पालिऊण असमबो। ता किं करेमि जयवंसाहसुजं मशकरणीय॥ए। जइ एवं जद्द तुमं पवऊ पालिउंच असमबो। ता सम्मत्त विसुङ पविङसु सावगं धम्मए॥5 पवावियविहिजोगेविणयसिरीविसयसुकनिरविका|जयकुमरोविढुगुरुणासावगधम्मंमिसंगविजे विणयसिरी खामे नमिऊण य पायपंकयं गुरुणो।संपत्तो निय नयरे कुमरो परिगहिय जिणधम्मो है सुवय गणणिसंमीवे पवऊ पालिऊण विणयसिरी। पावियकेवलनाणं संपत्ता सासयं गणं॥ए। इति पूजाष्टके कुसुमपूजायां चतुर्थमाख्यानकं समाप्तम् / 90%ARSHAN **3AHAHAHAHAIGUSESSORIASISHA १कायबं / विसुयो। 3 पवाविया य विहिणा।नयरं / ए गणिणि / 6 संपत्त केवलसिरी। ॥श्या McGunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TL

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