Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
View full book text
________________ र दणं पूअंती तिन्निवि संशाउ जिणवरं जत्ता / तुझवि जाया सझा पवत्ती ती तुमयंपि // 7 // जिणपूयापुन्नेणं सुरलोए मुंजिऊण सुकाई / तत्तो चुएण तुमए संपत्तं एरिसं रऊं // 7 // पुणरवि सुरनरसुवं कश्वय जम्मतराई जुत्तूणं। पाविहि सि सिझिसुखं जिणवरपूआणुनावण पुनश्हर सियहियर्ड जयवं पूआणुनाव नश्णी / कवणं गइंगया सासंप पुण चिहकबा8 नणि सो मुणिवश्णा सोहंमेसुरसुहाई जुत्तूणं। एसा सा तुह घरिणी संजाया विधिनिउँगेणं॥॥ सोऊण निययचरिशं मुणिवरवयणा ताण उहपि।जायं जाईसरणं संजरियं पुबनवचरिया पक्षणंति दोवि जयवं सच्चं तुझेहिं नासियं वयणं / अम्हेहिंवि विनायं जाईसरणेण नीसेसं // 3 // पत्नण सा विणयसिरी जयवं किं हुयवहंमि पविसामि।जं पुत्व बंधवो विहु नत्तारोमक्ष संजा घिहित्ति मन जम्मो जयवं लोएवि गरहिर्ड एस।पुवनवे नाया विहु लत्तारो जम्मि संजाय॥ चणिया सा मुणिवश्णा नद्दे मा एव फुस्किया होहि ।मरिऊण बंधवो विढु जत्तारो होइसंसारे 76 3 जयवं सच्चं एयं किंतु न मुलं अयाणमाणस्स। अप्पहियं श्छतो जाणंतो को विसं खाया तम्हा वियाणमाणी श्छामिन नाउणा समं नोए। जाजीवेमि श्याणि नियमाबंनवयं मशंजा ता देसु मन दिलं जयवं नवनमणपुरस्कनिद्दलर्णिांजणिया सामुणिवश्णा नद्दे उचिऊ तुह विवेन / पत्नणजयकुमरोविहु जयवंधिहित्तिएससंसारोजंमिमरिऊण नश्णी उप्पङाइ कम्मुणा घरिणी| .. 1 लणी / 2 जमंतराणि / 3 हरिसिय / / विहि / 5 मन / 6 जावजीवमियाणिं / 7 विवेगो। -C0 ( c.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhaki

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95