Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 60
________________ अष्टप्र. ॥श्ना जिणम देवी चविलं सायरदत्तस्स सिणिो धूया। सुलसागनुप्पन्ना नामेण सुदंसणा जाया 65 ! सा पढमजुवणबासमागयाकह विजिणहरे दिछाकणगमालाश्नणियासुसागय मशंसहियाए 662 & एयं तं जिणनवणं रिसह जिणंदस्स संतियं पवरं / जम्मंतरनिम्मवियं कलसुवरिं रयणदीवंच 67| 4 तें सोऊणं वयणं सुदंसणा पासऊण कणयं च / संपत्तजाश्सरणा आलिंग गुरुसिणेहेण // 6 // साहु तए सहि सम्मंअहयं पमिबोहिया पयत्तेण।श्य नणिऊणं मुन्निवि संजाया हरिससंतुझाए काऊण सावगत्तं सुझं समर्णत्तणं च पालेउ / मरिऊण समुप्पन्ना सबके सुरवरा दोवि // 70 // तत्तो चविऊण पुणो सम्मत्तं पालिकण सुविसुझं। कम्मरकरण सुन्निवि पत्ता सिकिं सुहसमिङि७१ श्य जणियं सुपसलं जिणदीवयदाण सुहफलं एँयं / संखेवेण सम, नवियाण विबोहणघाए // 2 // (दीवय कहाणयं समत्तं ) इति पूजाष्टके दीपदानोपरि पंचमं कथानकम् / 1 सुसागया। 2 तुन / 3 एयं त जिणलवणं जमंतर दीववि सो चेव। अहयं सा तुह सहिया तुमंपि मह सा सही चेव / / सोऊणमंवयणं / 5 सम्मत्तगं / 6 सामन्नं / 7 पुन्नफलमेयं / महवं / ॥श्ना HAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TIS

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