Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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________________ ॥श्६॥ अष्टप्र. जो जिणवरस्स पुर देश पश्वं पराइ नत्तीए / एमेव तस्स मस पावपयंगो न संदेहो // 13 // सोऊण धणसिरीविय जिणपुर मंगलं विहेऊण / पुप्फकयकयपूयं दे पश्वं सुजत्तीए // 14 // पूजा. 15 एवं पदियहं वियं दीवं दिती जिणवरिंदस्स / संजायं धणसिरीए जिणधम्मे निच्चलं चित्त॥१५॥5 उन्निविदिति पश्वं तिन्निविसंशा जिणवरिंदस्स / जत्तिजरनिलराउ जिणिदधम्मिकचित्तार६ 8 अह धण सिरी सयंविय नावं नियजीवियस्स पङतं। गिले जिणमईए वयणा अणसणं वीहिणा | है काऊण अणसणविहिं विसुङलेसाइ सा मरेऊणं / सोहंमे उववन्ना देवी दिवेण रूवेण // 17 // अह साधणसिरिविरहे उरकत्ता जिणमई विसेसेण। जिणवरदीवपयाणे पश्दियहं उऊमं कुण संपत्ते पळते विहिणा मरिऊण विहिनिगेणं / सोहंमे संजाया देवी धणसिरिविमाणं मि॥२॥ अवहिविसरण ना नीसेसं पुवजम्मसंबंधं / तबवि गयाउ सुन्निवि जाया गुरुसिणेहाज॥२१॥ नियरि िदणं उन्नवि चिंतंति विझियमणा / केण सुकएण एसा पत्ता अह्मेहिं सुररिद्धी वीन्नायं नाणेणं जिणवरजवणं मि दीवदाणेणं / संपत्ता अझेहिं एसा हियश्लीश्रा रिकी // 3 // तत्तो समरेऊणं रिसह जिणिंदस्स मंदिरं पवरं / अवश्नाउ पुन्निवि रहसेणं मेहनयरंमि॥४॥ फलिहसिलायलघमियंकंचणमणिरयणथंजपरियरियारिसहजिणेसरनवणं विणिम्मियंकमलपेरंतं है। 13 // 26 // | 1 पयदियहंचिय / जिणवर / 3 अहिययरं / अवहिवसेणं। ५उन्नवि।६तंसरिजणं। परमं। कलसपेरंत। HIAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. TE

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