Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 49
________________ सोऊण श्मं वयणं पवणाहयतरुदलंव कंपंती। पत्नणश्लीलावैश्य जयवं निसुणेह मे वयणं // 23 // || जश एवं ता जयवं पावा अणुहिय मए पावं / मालाए वुत्ततो नीसेसो साहिउँ तस्स // 24 // जयवं पावविसोही होही कह कहसुमन पावापानणिया जिणपूाए नाव विसुद्धी विहियाए२५ है 6 तत्तो समुहिऊणं पजण नमिऊण जावजीवाए। कायवा अवस्स मए जिणपया तिन्निसंझाउँ६॥ , तह जिणमय पछा पछायावेण तावियसरीरा। खामश्चलणविलग्गा पुणो पुणो ज्ञावसुद्धीए॥७॥ एवं मुणिवयणा पमिबुझा सहजणेण अह लीला। निम्मलसम्मत्तजुया संजाया साविया परमाश्|| जावनअबविणासोजाव न जीवस्स बंधवविउंगो।जाव न पावश्दुरकं ताव न धम्ममि जजमशए || एवं विबोहिऊणं मुणिणो सम्माणदाणकयपूया।संपत्तसाहुकारा विणिग्गया ती गेहा // 30 // लीलावईवितेत्तो तिन्निवि संज्ञासु पवरकुसुमेहिं / पुजइजिणवरचंदंपदियहं परमैनत्तीए // 31 // अह उक्कंठियहियया बहुदिणदिहाउ जणणिजणयाणानियपश्णा अणुन्नायासमागया उत्तरामहुरं / सालही स्व सहसाए गेहंमि समागयाइलीलाए।संजा संतोसोबंधवजणजणणिजणयाण // 33 // कुवंती जिणपूयं पुछाच नाजणा सिणेहेण।साहसु तुमं सहोयरि जिणवरपूयाफलं मन // 34 // नणि सुणसु सहोयर जिणवरपूश्राश् पावए जीवो। सुरचक्केसररिछी पुणोविसिद्धीसुहसमिझी३५, ह लोएविन पहवर उवसग्गो सत्तुंदुहसंजणिउँ।जो जिणवरस्स पूयं करे नत्तीय सत्तीए // 36 // १नीया पजण लीला / 2 मह / 3 पावाएणुज्यिं / 4 एयं / 5 विसुधिवि। 6 अवस / लीलाववि। // 4|| लीलाए / एइत्तो। 10 संता / 11 पवर / 12 पुर्विश्व / 13 तस्स / 15 कुण सया तिन्निसंता। & Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TID

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