Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 13
________________ तेणविसा पझिजणिया-चरियं उय कप्पियं तुह कहेमोहनणिएसाजंपश्चरिएमह नाहसंतोसो है जह जयसूरोराया सुहमश्नामेण तस्स जह नजा।जह अहावयगमणं मुणिणो जह गंधपूयाए॥ जह देवलोगगमणं चवणं मयणावलीए पजंतं / तं सुहमईए चरियं नीसेसं साहियं तेण ॥ए॥5 18 मयणावलीवि इत्तो सोऊणं तस्स नासियं सव्वं / संचरई पुव्वजाइं निंदर अप्पाणयं तत्तो॥ ए॥5 चिंतश् मणं मि तो सा सवंचिय मन साहियं चरिय। एएण वरसुएणं हिं जं कहश्तंसुणिमो॥ * जंपश्पुणोविसुयगी सा संपश् कहहुँ कत्थ परिवस। एसा सातुह पुर चिश्मयणावली नद्दे // एयाये पुवनवे मूढाए जं पुगंबिऊ साहू / तेण उगंबियदेहा संजाया श्व जम्मंमि // 11 // - संपश्ज सत्तदिणे तिन्निवि संताज पवरगंधेहिं / पुजा जिणवरचंदं तो मुच्चश्वसणपुका॥१०५२ *मयणावलीवि एवं सोऊणं नियय सवमाहरणं / परिकवर सपरितुहा पुर तं कीरमिहुणस्स // ॐ तत्तो तं सुयमिहुणं तीसे सहसा अदंसणी ह्यांविम्हियहियया चिंत कह कीरो मुणश्महचरिथ पुलिस्संनाणजुझं एवं सुअवश्यरं विसेसेण / ता पूएमि जिणिंदं गंधेहिं विसुझबुडीए // 15 // 18 एवं विचिंतिकणं पूयंतीए जिणं सुगंधेहिं / मंतेहिं पिसा श्व नहो देहाउं उग्गंधो // 16 // र दळूण तं पण गंधं देहाउ अत्तणो सवं / आणंदबाहुँजलनरिय लोयणा जत्ति संजाया॥१०॥ / 1 एवं / सोऊणय / 3 सू। 4 नाह / 5 सबमुयाहरणं / 6 सुपरितुन / 7 एयं / चिंतेऊण / ए च / 10 बाह / 11 संबुद्धा / Clic Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TE!

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