Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 24
________________ // 1 // अष्टप्र. तो पुछो कोवि नरो कि एसो रूयश् नरवश्लोउँ / तेणवि सवो सिहो वुत्तंतो रायकंनाए // 3 // धूपपू. ॐ जय एवं ता साहसु एअं गंतूण निययसामिस्स।जह एसो कोवि नरो कंनाए जीविरं दे // 4 // तेणवि गंतुं सिहं जह एसो देव एरिसं जण। अहिदहाए जीयं देमि अहं रायकंनाए॥५॥ विणयंधरेण लणियं पजणी करोमि रायवरकन्नं / चलणेसु निविमिळणं अह भणियं रायपुरिसेहिं // 7 // कुणसु पसायं सुपुरिस गम्मन ता नरवरस्स पासंमि / एवंति जंपिऊणं पत्ता ते रायपासंमि // 15 // काऊणं च पणाम नणियं विणयंधरेण कुमरेण / मुंच विसायं नरवर फ्लणिं च करेमि तुद धूयं // 76 // तं निसुणिऊणवयणं हरि सियहियएण राणा नणियातुह कंनाए सहियंरजा देमि सविसेसं७६|| अन्नंचिय जंजणसितं सवं देमि तुम्हे सविसेसं / किं जंपिकणे बहुणा जीयंपिहु तुह पयामि विणयधरेण विने मिजं नणियं मा देव एरिसंनणसु। सिके कर्ज मि तुमंजंजुत्तं तं कुणिजासु॥॥ दसिङाउ देवसुधा नणिए सा कढिकण चियगा / विणयंधरस्स पुर उविया बहुलोयपञ्चकं हूँ अकयकुसुमसमिके कयगोमयमंमले ग्वेजण ।जकं काऊण मणे सित्ता सा रयणनीरेण // रयणजलसित्तगत्ता चेयणं पाविऊण सा कंना। अवलोश्यं पयत्ता तं पासपरियिं लोयं // 7 // तं सच्चि नाउं अंके काऊण अत्तणो धूअं / आणंदसमुहियनयणवारिधाराहिं धोवेई // 2 // // 1 // पुनश्स गग्गय गिरों वछे किं बाहए तुह सरीरे। ताय न बाहश किंचिवि चियगा किं दीसएँ एसा॥8॥ - 1 सर्छ / 2 पत्नणसि / 3 तुश। 4 जंपिएण / 5 विणयंधरेण / 6 चेयन्नं / 7 अवलोखं / सिंचे। ए गगिरगिरो। 10 दिस्सए / RIAc-Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak

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