Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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________________ नणि मंतीहिंनिवो किङ एयाश्यग्गिसक्कारोजिणिया ते नरवश्णा मसविकिऊल सहश्माए ? चलणविलग्गो लो पजणश्नहु देव एरिसं जुत्तानणसुकं राजे नेहस्स नऽन्निमग्गा // 4 तामा कुणह विलंब कढह लहु चंदर्णिधणं परं ।श्य नणिऊणं राया संचलि पिअयमासहिए। ॐ वडिरतूररवेणं रोविरनरनारिपउरनिवहेण / पूरितो गयणयलं संपत्तो पेयगणंमि // 51 // जा विरश्कण चिश्रयं राया थारुहर पिश्रयमासहिउँ / ता पूरा यंती पत्ता परिवाश्या त५॥ है नणि तीए तुमयं मा एवं देव साहसं कुणसु।नर्णियं तुमए जयवश्मह जीयं पिअयमासहियं 53 जर एवं ता विसहसु खणमेगं माहु कायरो होसु। जीवावेमि अवस्सं तुह दश्शं लोअपञ्चकं॥५॥ तं वयणं सोऊणं ऊससियं तस्स राणो चित्तं / नहु जीवियस्स लाहे जह लाहे ती नजाए॥५५॥ नयवश्कुणसु पसायं जीवावसुमश वसहं दश्यातीए विहु देवीए दिन्नो संजीवणीनासो // 56 // तस्सपनावेणं चिय सा देवी सयललोयपच्चरू। उजीविया य समयं नरवश्णो जीवियासाए॥५॥ * तंजीवियंति ना आणंदजबुललोयणो लो / नच्चश् उप्रियबाहो वजिरबहुतूरनिवहेण // 5 // सवंगाजरणेहिं पाए परिवाश्याश्पूऐणं / पत्नण अो अजं जं मग्गसि तं पणामेमि // 5 // | 1 कीरज / 2 सपुरकं / 3 दोन्निवदा / 4 कठ्ठहु बहु चंदणं इमं पवरं। 5 पूरंतो। 6 चियगं / नती। - एगा। ए जणिया / 10 जगव। 11 समगं / 12 आणंद जलोह हरिसित राया / 13 ताहे || परिवाश्यं च पूएवं। Jun Gun Aaradhak R AC.Gunratnasuri M.S.

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