Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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________________ A S REKHARSHASHIKARI एवं मुस्कियहियचिहराया नियम्मि नयरंमिाहवा घरिणीहरणे नण कस्स नजायए उक। अवहि विसएण नाउँ पुत्तं तं सूश्गाश्देवीए।महनाया नियजणणी घरिणीबुद्धीए अवहरए॥१४॥ | नियपुरपञ्चासन्ने सरवरपालीश्चूयबायाए।जणणीसहिउँ कुमरो जाचिश्ताव सा देवी // 14 // वानररूवं तह वानरीए काऊण चूयसाहाए। पजण वानररूवी कामूय तिवं श्मं नो॥ 150 // तिरिवि एव पमि तिबपनावेण लहश्मणुअत्तं।मणुउँविहु देवत्तं पावश्नबिल संदेहो // 15 // ता पेठसुदोन्निवि माणुसाइं पच्चकदेवनूआई। एआईमणे का निवमामो श्व तिबंमि // 15 // जेण तुमं माणुसिया बैंहं पुण एरिसोमणुस्सुत्ति ।होहामित्ति पनणिशं को नाम गिन्हश्श्मस्स जो निजणणि पिकं घरिणीबुद्धीनेश्हरिऊणांतस्सविपावस्सतुमं सामियरूवम्मिहिलासो सोऊण वानरीए तं वयणं दोवि विमित्रमणा।चिंतंति कहं एसा महजणणी सावि कह पुत्तो५५ है नेहेणं हरिएविहुँ एसा मह जणश्जणणिबुङत्ति।साविय चिंतश्एसो महपुत्तो उअरजाउत्तिर५६ है पुनसंसयहिय कुमरोतं वानरं पयत्तेणं / जद्दे किं सच्चमिणं जं तुमए नासियं वयणं // 15 // तीए नणियं सच्चं जश्अजवि तुस अनि संदेहो। ता एयमि निगुंजे पुन्छसु वरनाणिणं साहुं॥१५॥ श्यनणिऊणं सहसा वानरजुअलं असणीहूझं।सोविय विनियहिय पुछश्तं मुणिवरं गंतुंएए / जयवं किं तं सच्चं जं जणियं वानरीए महपुरजीमुणिवर्णाविहु जणि सच्चंत होइनहु अलिअं६० 1 नायं / 2 पिञ्चसु / 3 देवरूवाई। 4 अहयं / 5 हरियाविहु / 6 बुद्धित्ति / 7 श्चतुत / 7 मुणिवयणा / RIAc Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak

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