Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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________________ no RSS RSSRESSESECRE जणि य सालिवालो एयाणं तंडुलाणदाणं च। पदियहं दायत्वं रासिं काऊण खित्तं ते // 7 // जाणवेश देवो श्य नणिए नण कीरमिहुणंपि।एस पसाउँसामिय श्य नणि शत्ति उड्डाणे७३ | * पुवुत्ते चूअईमे गंतूणं पुन्नमोहला सूई / नियः नियममि पसूया निप्पन्नं अंमयगंति // 3 // अह तंमि चेव समये तीए सवक्कीवि निययनीमि।तमि उमंमि पसूया संपुन्नं अंमगं एगं॥५॥ जा सा चूणिनिमित्तं विणिग्गया तं उमं पमत्तूर्णं ।ता मछरेण पढमााणश्तं श्रमगं तीए // 6 // जापछिमान पिछश्समागया तब अत्तणो अंगीता सफरिव विलोम धरणियले कसंतत्ता॥ तं विलवंति दई पछायावेण तवियहिययाऐ / पढमाए नेऊणं पुणोवि तव तं मुक्कं // 7 // |P धरणियले बुखिऊणं अंबं श्रारुहश् जाव नीमंमिता पिछश्तंभ साकीरिय श्रमयसितवाणां|| बधं च तं निमित्तं कम्मं पढमाए दारुणविवागं। पछायावेण हयं धरियं चिय एगलवपुरकं // 70 // |5| तं मिय अंमयजुयले संजाया सूश्गा यसुअगोयाकीलंतिवणनिगुंजे समयं चिजणणि जणेगेहिं रए तंडुलकूडे नरवश्वयणाज सालिखित्तंमि / चंचुपुडे गहिऊणं वच्च तं कीरमिहुणंति॥७॥ अह अन्नयाकयाई चारणसमणो समाग नाणी। रिसह जिणेसरनवणे वंदणहे जिणिंदस्स॥३॥ | 1 सालिपालो। जणिऊणं एवमुड्डिणं / 3 चेवमुमे / धनियलंमि। 5 अंडगधुगंपि। 6 सवक्की / // विमुत्तूणं / सहसत्ति ताव पमिया / ए ताविया हियए। 10 पुणोवि आरुह जाव निलयंमि / 11 अंडं / / 12 जणएण। MIAC.Gunratnasuri M.S, Jun Gun Aaradhak

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