Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 30
________________ অষ্টম // 13 // देवेहिं पामिहेरं विहियं एयस्स किं निमित्तेण / साहेह श्मं सवं अश्गरुयं कोउगं मशं॥१४॥४|| साह मुणी महप्पाश्त्तोजमा तश्यजमंमि / उकित्तो वरधूवो जिणपुर कयपश्नणं // 4 // 14 पनी बे गाथा वधारे ने ते. तेणेसो संजाउँ धूयसुर्यधो मणोहरबा / देवेण पूयणिजो सुहजागी जोगनागीय // 14 // इत्तो नरसुरसुरकं नुत्तूणं श्च सत्तमे जम्मे / पाविहश् मुरकसुरकं जिणिंदवरधूयदाणेणं // 16 // एसो य धूयसारो पुत्तो तुह श्रासि तश्यजमंमि।पोयणपुराश्चरियं सवंचिय साहियं तस्स॥१४॥ जं पुण इमिणा जणि रमे विलिपेह असुश्णा एयं।तं संपश् अणुहूर्यं तुझ सयासाउ एएण 146 जायजाईसरणं तं केवलि नासिय सुणंतस्स / धम्मंमिय बहुमाणो संजा धूयसारस्स // 14 // संजायधम्मसको सवंचिय नेहबंधणं उित्तुं / नरवश्सहिउँ दिलं पमिवन्नो धूवसारोवि // 14 // तवसंजमनियमर पवङ पालिकण सोधीरो।आउकयंमिमरिचं संपत्तों पढमगेविडो॥१४॥ तत्तो सो चविऊणं नरसुरजंमेसु परिजवेऊणें / सत्तमजमंमि तई' संपत्तो सासयं गणं॥१५॥ धूयसारकहाणयं संमत्तं। // पूजाष्टके धूपविषये विणयंधरकथा समाप्ता॥२॥ // 13 // 1 मन / जणियं / 3 लिंपेह / 4 अणुनूयं / 5 केवलि संजासियं सुयंतस्स / इति वितीयपादः। 6 अणु&रा / 7 जिन्नं / - संजा। ए परिजमेऊण / 10 पुणो। Jun Gun Aaradhak Thu DIAC Gunratnasuri M.S.

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