Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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________________ गंधसारेण जणीयं नहु एसो सामि धूयगंधुत्ति / महदेहाज समुडो एसो साहाविउँ गंधो // 13 // असुविलित्तं काळं एयं गवेह नयरमसंमि / श्य रुठेणं रन्ना हा अत्तणो पुरिसा // 131 // ||6|| 1 एयस्स धूयगंधो देहा जेण नास असेसो। श्य जणिए नरवश्णा सपिअणुहियं तेहिं॥१३॥ अह सोजको तह जरिकणी लकूण माणुसं जंमंजिणवर धम्मेण तनप्पन्ना सुरवरा दोवि१३३ तो ते दोवि सुरा वच्चंता केवलिस्स पासंमि। पिछति धूयसारं बहुअसुईकद्दमालित्तं // 13 // पुवसिणेहामुन्निवि अवहीनाणेण तं वियाणेळी मुच्चंतिसुरहिसलिलं तस्सुवरिंकुसुमवुचि॥१३५ अहिययरं च सुयंधी गंधो देहाउं तस्स उचलि। सबजणाणंदकरो वासंतो दस दिसाजोय॥१३६॥ 18 तं नाऊणं राया जी खामेश्पायपमिलग्गोपनणश्खमसु महायस उच्चरिअंतुझ जंजणिय 137 | तेणविजणि नरवर थोवोविहु नविश्व तुहदोसो।सबोपुवकयं चियअणुहवश्सुहासुहं कम्मर३० % राया विह्मियहिय असरिसचरिएण धूयसारस्स।चिंतश्गंतूण अहं पुनिस्सं केवली ऐयं ॥१३णा र सह परिययेण राया बंधवसहि य धूयसारोविगंतुं केवलिपासे उवविको पणमि हिकार४० धमं सोऊण तेन पुल नमिऊण केवलिं राया। जयवं किं पुवनवे समङियं धूवसारेण॥१४॥ जेणेसो सुसुयंधो गंधो देहाइ निच्चमुखलाई। असुईए किं विलित्तो एस मए निरुवराहो वि॥१४॥ 1 धूयसारेण ।पाउत्ता-३ जिणधम्मेण 4 तळ ते 5 दोहिंवि।६ कुसुमवरिस सलिल वुद्धिस सुयंधो / एविहियं / 10 इमं / 11 समिवे। १श्व / 13 जवविध / 14 पुष / 15 देहाज निच्चमेव नल। इतिक्तिीयपादः। OK Gunratrasuri M.S. Jun Gun Aaradhak

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