Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 22
________________ अष्टप्र. // // श्तो गंधविबुझा गयणयले' जण जरिकणीजवं।सामिय एस जुवाणो जिणपुर मह वरधूयं 6 ताखण धरसु विमाणं जावेसो बहलपरिमलं धूयं / महिलं जिणस्स पुर संचबई निययगणा महिला सहावजणियंतीसे सो जाणिकण कुग्गाहं। विसहररूवं काउं समागर्म तस्स पासंमि॥ए। जीसणरूवं काउं एयं चालेमि निययगणार्छ / जेणेसा महमहिला गमणारंने मई कुण॥५॥ दहुं नहो लोर्ज, तंजक विणिम्मियं उरगरूवं। मुत्तूणं विणयधरं, सप्पो सप्पुत्ति कुणमाणो॥५१॥ * चिंतश्रुको जरको, नहोसबोवि मतसंकाए। एसो सेवुव चिन, नहु चलि निययगणा // 5 // ४ता तह करेमि संपश्, जह एसो जीवियपि उड्डे / श्यचिंतिकणं जको, विसहररूवेण वेढे // 53 // [3 मोडे अहिया, अंगं अंगेण तस्स पीडे। तहविहु नियगणा न चालिङ तेण जकेण // // इत्तो" सो संतुझो, जस्को होऊण तस्स पञ्चको। पजण तुह सत्तेणं विणिजिउँदेमिजंजणसि५५|| संपुन्न पइनेणं नणियं विणयंधरेण नमिऊण / संपन्नं मह सवं जं पत्तं दसणं तुझ" // 56 // अहिययरंतुझेणं नणियं मा लणसु एरिसं वयणं / जमा न होइ सुपुरिस देवाणं दंसणं विहलं 57 2 श्य नणिऊँणं वयणं हरि सिय हियएण तेण जकेण। विणयंधरस्स दिन्नं विसहरविसनासणं रयणं / अन्नं च किंपि पत्नणसु नणिए नणियं च तेण नमिळण। पहणसुकंमगरतं मन कुलं पायमं कुणसु 4 गयणेय। दह।३ ता खलसु वरविमाणं / / बहु / 5 दहिऊणं जिणपुर / 6 संवदइ। जमाणो। जरकोरुने। हाएरूसिऊण।१०विलसिर 11 एत्तो।१२पयन्नेणय / 13 संपत्त / 14 तुह्म / 15 नपिऊणय 16 हरसिय।१७कम्मकरतं // // W Ac.Gurnratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TIL

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