Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 26
________________ // 11 // अष्टप्र. पुवपमिएण पत्तो' समप्पि जह य सबवाहस्स / तं सवं साहेलं जको अईसणीहूर्ख // 6 // सोऊण जरकवयणं हरि सियहिय नणई नरनाहो।जह एस नाणे मह कमलानइणिपुत्तत्ति॥ आणं दियहियएणं दिन्ना विणयंधरस्स सा कंना। तेणविसा नाणुमईपरिणीया वर विजूईए ॥ए 8 पत्तं च महारऊं जाया वंसस्स पायमा सुझी / पहयं कंमगरत्तं जिणंदापनावेण // एए // (पहयं कम्मकरतं जिणिंदधूयप्पदाणेण ) पागंतरं / गुरुअमरिसं वहतो पिजणो उवरिं महंतसिन्नेणं ।संचलिउ विणयधरो संपत्तो पोयणपुरंमि॥१०॥ वामं अंगं वामं च लोयणं वामगंच सीसकं / कमलाए जणणीए विफुरियं तंमि संमयंमि॥१०॥ अमुणियसुयवुत्तंतो समठरोवरसीहनरनाहो।संनझबझकवन विणिग्ग अनिमुहो तस्स 102|| संजायं ताण रणं गयघमसंघट्टचूरियनमोहं। जमसंघटकरहिय कुंतग्ग विजिन्न गयनिवहं // 13 // जावें जणएण मुक्का सरावली नियसुअस्स नीसंका / सादश्व सलोहा पमिया बछबले तस्स // 10 // तेणवि सासंकेणं जा मुक्का बाणवई पिउणो।सौ धयउत्ते बित्तुं माणुवं विणिग्गयातुरिय॥१०॥ जणविहु परिकुको"जाव सरं कुणई निययकोदंड।ताजकेणंधरि थंने चित्तलिहिउव॥१६॥ (ता जकेणं धरि थनिन चित्तलिहियत्व ) पागंतरं . 1 पुत्तो। इनणे / 3 नगिणियापुत्तो।। महन्न / 5 संपुत्तो / 6 वामयं व / 7 विप्फुरियं / दियहमि / ए संघाय / 10 जा। 11 निस्संका / 15 बाणपघई / 13 साविय / 15 माणब / 15 परिकुवि / 16 मुया। // 19 // B AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TL

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