Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 15
________________ गंधपू. अष्टप्र. मयणावली वि अजा रयणीए नियय आसम ज्वारोनिच्चलसाणंमि चिया सा दिहो तेण कुमरेण॥ दिवविमाणारूढो कंचणमणिमउमसियसरीरो।सो विजाहरकुमरो पयमंतो अत्तणो रिकिं 134 पनणश्कीस किसोयरि उग्गतवं कुणसि कहसु मम एयं। जश्श्चसि जोगसुहं ता निसुणिसु / नासियं मन // 135 // अहयं खेयरकुमरो मियंक नामुत्ति रयणुमालाएँ। पाणिग्गहणनिमित्तं गचंतेणं तुम दिहा // 136 // थारुहसुक्रविमाणं रयणमालाए किंपिन हु कऊं / जसु उत्तमसुकं मए समं खयरनयरंमि // एवं पत्नणंतस्स य अणेय चाडूणि जंपमाणस्स।न चल नियसत्ता सुनिच्चला मेरुचूल // 13 // जह जह मयणवियारे दंसश्सो पुवजम्मनेहेण।तह तह सा सुहकाणं श्रापूरेश्गुरुयसत्तेणें // 13 // || जा सो मोह विमूढो अणुकूले कुणश्तीश्वसग्गे। ताजत्ति ती विमलं उप्पन्नं केवलं नाणं // 14 // देवेहिं कया महिमाखिविया कुसुमंजलीविसीसंमिातासो विह्मियहिय पलोयए तीमुहकमलं होऊण तुमं खयरो मए समं निवसिऊण सुरलोए।जाउँ पुणोविखयरो तहविहु नेह नउड्डेसि 142 तह्मा चयसु महायस एयं संसारकारणं मोहं।होऊण एगचित्तो धंमंमि समुङमं कुणसु // 14 // श्य केवलिवयणा सरिऊणं पुत्वजम्मसंबंधं / संवेगसमावन्नो जप्पाम अत्तणो केसे // 14 // | 1 दिक्षा सा / 2 एवं / 3 निसुणसु / / रयणमालाए। एमए / 6 न रयणमालाए किंपि महु कऊं। 7 अठाणेग। मेरुचूलिब / ए आरुह।१० गरुय सत्तेणं / // 6 // Ac:Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. TE!

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