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उववाइय सुत्तं सू०५
निकर-अयसि-कुसुम-प्पगासे मरकत-मसार-कलित्त-णयण-कीयरासिवण्णे णिद्धघणे अट्ठसिरे आयंसय-तलोवमे सुरम्मे ईहामिय-उसभतुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किण्णर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलयपउमलय-भत्तिचित्ते आईणग-रूय-बुरणवणीत-तूल-फरिसे सीहासणसोठए पासादोए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ।। ५ ।।
उस सुन्दर अशोक वृक्ष के नीचे, उसके तने के कुछ समीप पृथ्वी का 'एक बड़ा शिलापट्टक (चबूतरे की ज्यों जमी हुई मिट्टी पर स्थापित) था। उसकी लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई समुचित प्रमाण से युक्त थी। वह काला था। अंजन-वृक्ष विशेष, बादल, कृपाण, नीलकमल, बलदेव के वस्त्र, आकाश, केश, काजल के घर, खंजन पक्षी, भैंस के सींग के भीतरी भाग, रिष्टक रत्न, जामुन के फल, बीयक नामक वनस्पति, सन के फूल' के डंठल, नीले कमल के पत्तों की राशि-समूह, और अलसी के फूल के समान उसकी ( शिलापट्टक की ) प्रभा थी। इन्द्रनील मणि, कसौटी, कमर पर बाँधने के चमड़े के पट्टे, आँखों की कनीनिका ( तारे ) इनके पुंज के समान उसका वर्ण था। वह अत्यन्त स्निग्ध-चिकना था। उसके अष्टकोण-आठ कोने थे। वह दर्पण के तल के समान चमकीला था। भेड़िये, बैल, घोड़े, मनुष्य, मगर, पक्षी, सर्प, किन्नर, रुरु, अष्टापद, चमर, हाथी, वनलता तथा पद्मलता के चित्र उस पर बने हुए थे। उसका स्पर्श मृगछाला, कपास, बूर, मक्खन और आक की रुई के समान मृदुकोमल था। वह आकार में सिंहासन के समान था। इस प्रकार वह शिलापट्टक प्रसन्नकारक, देखने योग्य, मन को अपने में रमा लेने वाला और मन में बस ज़ाने वाला था ॥५॥
Beneath the very fine aśoka tree, not far from where it touched the ground, there was a very big slab of stone. It had a standard length, breadth and height. It was black in colour, and had the glaze of anjana, a cloud, a short sword (krpāna), blue lotus, Baladeva's robe, the sky, hairs, a house of collyrium, khanjana, the inner portion of a horn, a stone called ristaka, the black berry, a plant named viyaka, the stalk of