Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 335
________________ 306 Uvavaiya Suttam Si. 43, सिद्ध यमान के संहननादि Bone-structure, etc. of the Liberated गौतम : जीवा णं भंते ! सिझमाणा कयरंमि संघयणे सिझंति ? महावीर : गोयमा! वइरोसभणारायसंघयणे सिझति । .. गौतम : जीवा णं भंते ! सिझमाणा कयरंमि संठाणे सिझति ? महावीर : गोयमा ! छण्हं संठाणाणं अण्णतरे संठाणे सिझति । गौतम : भगवन् ! सिद्ध यमान-सिद्ध होते हुए जीव किस संहनन- . दहिक अस्थि-बन्ध में सिद्ध होते हैं ? । महावीर : हे गौतम ! वे बज़-ऋषभ-नाराच संहनन-कीलिका और पढ़ी सहित मर्कट बन्धमय सन्धियों वाला अस्थियों का बन्धन में सिद्ध होते हैं। गौतम : प्रभो ! सिद्ध यमान–सिद्ध होते हुए जीव कौन से संस्थानशारीरिक आकार में सिद्ध होते हैं ? महावीर : हे गौतम ! छह संस्थानों-समचतुरस्र, न्यग्रोधपरिमण्डल, सादि, वामन, कुब्ज एवं हुंड में से किसी भी संस्थान में सिद्ध हो सकते हैं। Gautama : Bhante ! A being marked for perfection, in what type of bone-structure is he perfected ?

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