Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 345
________________ 316 Uvavaiya Suttaṁ Si, Sta. दीर्घ अथवा हस्व - बड़ा-छोटा, लम्बा-ठिगना जैसा भी आकार अन्तिम भव में होता है, उस से तिहाई भाग कम में अर्थात् तीसरे भाग जितने कम स्थान में सिद्धों की अवगाहना – अवस्थिति अथवा व्याप्ति होती है, ऐसा जिनेश्वर देव के द्वारा कहा गया है ॥४॥ Long or short, whatever the size, Before breathing out from the last life, One-third less space than occupied then, A perfected soul occupies this much space. 4 तिणि सया तेत्तीसा घणूत्तिभागो य होइ बोद्धव्वा । एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहूणा भणिया ||५|| सिद्धों की उत्कृष्ट - अधिक से अधिक अवगाहना - ऊंचाई, तीन सौ तैंतीस धनुष तथा तिहाई धनुष अर्थात् बत्तीस अंगुल होती है । सर्वज्ञों ने ऐसा बतलाया है | ॥५॥ इस का तात्पर्य यह है कि जिन की देह पांच सौ धनुष विस्तारमय होती हैं यह उन की अवगाहना है । Three hundred and thirty three dhanusas Plus a third of dhanusa one, This has been said by the omniscient beings, To be the maximum size of a perfected soul. 5 चत्तारि य रयणीओ रयणित्तिभागूणिया य बोद्धव्वा । एसा खलु सिद्धाणं मज्झिमओगाहणा भणिया ||६||

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