Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 351
________________ Üvaväiya Suttath SI, Stai इय सिद्धाणं सोक्खं अणोवमं णत्थि तस्स ओवम्मं । किंचि विसेसेणेत्तो ओवम्ममिणं सुणह वोच्छं ।।१७।। उसी प्रकार सिद्धों का सुख अनुपम है। उसकी कोई उपमा नहीं है। तथापि सामान्य जनों के बोध हेतु कुछ विशेष रूप से उपमा के द्वारा उस सुख को समझाया जा रहा है, सुनें ।।१७॥ तात्पर्य यह कि मैं उस सुख की उपमा कहता हूँ, सो सुनो। The joy enjoyed by the Siddhas has no parallel, There's nothing on this earth which may its equal be, Still I will try to describe this joy, With the help of comparisois, listen to me. 17 जह सव्वकामगुणियं पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोइ । तण्हाछुहाविमुक्को अच्छेज्ज जहा अमियतित्तो ॥१८॥ जैसे कोई व्यक्ति अपने द्वारा चाहे गये सर्व गुणों-समग्र विशेषताओं से युक्त भोजन कर, भूख व प्यास से रहित होकर अमित-- अपार तृप्ति का अनुभव करता है ॥१८॥ By enjoying a dish having all desired food, Just as a man who has it, He is freed from hunger and thirst, Has a gratification which knows no limit. 18 इय सव्वकालतित्ता अतुलं णिव्वाणमुवगया सिद्धा। .. सासयमव्वाबाहं चिट्ठति सुही सुहं पत्ता ।।१९॥ .

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