Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 349
________________ 320 Uvavaiya Suttam Si. Sta. केवलणाणुवउत्ता जाणंति सव्वभावगुणभावे । पाति सव्व खलु केवलदिट्ठी अनंताहि ॥ १२ ॥ वे सिद्ध केवल ज्ञानोपयोग के द्वारा समस्त पदार्थों - वस्तुओं के गुणों एवं पर्यायों को जानते हैं तथा अनन्त केवल दृष्टि-दर्शन के द्वारा सर्वतः.. सब ओर से समस्त भावों को देखते हैं । ॥ १२ ॥ With the help of knowledge supreme, They know the quality and category of all things, With supreme vision, which is infinite, They can view from directions all. 12 वि अत्थि माणुसणं तं सोक्खं णविय सव्वदेवाणं । जं सिद्धाणं सोक्खं अव्वाबाहं उगाणं ।।१३।। सिद्धों को जो अव्याबाध - विघ्न और पीड़ा से सर्वथा रहित, शाश्वत - सुख प्राप्त हैं, वह न तो मनुष्यों को प्राप्त है और नं सभी देवताओं कोही प्राप्त है | ॥ १३ ॥ Neither the humans nor ali celestial beings, Have the same experience of bliss, Which is free from obstruction and disease, Which is attainable by the perfected souls, 13 जं देवाणं सोक्खं सव्वद्धापिडियं अनंतगुणं । ण य पावइ मुत्तिसुहं णंताहि वग्गग्गूहि ||१४|| ऐसा वह तीन काल — अतीत, वर्तमान, तथा भूत - तीनों कालों से गुणितअनन्त देव-सुख है, उसे अनन्त बार वर्ग-वर्गित किया जाए, अनन्त गुण सुख मोक्ष-सुख के समान नहीं हो सकता ॥ १४ ॥

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