Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 348
________________ उववाइय सुत्तं सिद्धस्त० 319 एक-एक सिद्ध निश्चय ही अपने समग्र आत्म प्रदेशों द्वारा अनन्त सिद्धों का सम्पूर्ण रूप में संस्पर्श किये हुए हैं। यों एक सिद्ध की अवगाहना में अनन्त सिद्धों की अवगाहना है। अर्थात् एक सिद्ध में--अनन्त सिद्ध अवगाढ़ हो जाते हैं। और उन से भी असंख्येय गुण वे सिद्ध हैं, जो देशों तथा प्रदेशों से अर्थात् कतिपय भागों से एक दूसरे में अवगाढ़समाये हुए हैं। ॥१०॥ वास्तविकता यह है कि सिद्ध अमूर्त होने के कारण उन की एकदूसरे में अवगाहना होने में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती है। As a rule, does a Siddha touch, With his space-points an infinite number more, A perfected being touches an infinite number more, With all the space-points of the soul, Much more are those Who are touched by some space-points of the soul. 10. असरीरा जीवघणा उवउत्ता सणे य णाणे य । सागारमणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं ॥११॥ . वे सिद्ध अशरीर-शरीर रहित, जीवधन-सघन अवगाह रूप आत्म प्रदेशों से युक्त, दर्शन और ज्ञान-दर्शनोपयोग व ज्ञानोपयोग से उपयुक्त हैं। इस प्रकार साकार-विशेष उपयोग ज्ञान और अनाकारसामान्य उपयोग -दर्शन, चेतना सिद्धों के लक्षण हैं। ॥११॥ These perfected beings, they have no body, Soul alone, saturated in knowledge and faith, The sign of a perfected soul is Its saturation in knowledge and faith. 11

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