Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 352
________________ उवधाइय सुत्तं सिद्धस्त 323 उसी प्रकार सर्वकालतप्त--समस्त समयों में परम तृप्ति युक्त, अतुल—अनुपम शान्तियुक्त सिद्ध शाश्वत--नित्य तथा अव्याबाधविघ्न-बाधा से सर्वथा रहित परम सुख में संस्थित-निमग्न रहते हैं ॥१९॥ So a perfected being, gratified, Who has attained liberation which has no parallel, He lives by being happy, For, happiness eternal and unobstructed is his. 19 सिद्धत्ति य बुद्धत्ति य पारगयत्ति य परंपरगयत्ति । उम्मुक्ककम्मकवया अजरा अमरा असंगा य ॥२०॥ वे सिद्ध हैं-उन्होंने अपने सर्व प्रयोजन साध लिये हैं, कृतकृत्य है, वे बुद्ध हैं केवलज्ञान के द्वारा विराट विश्व का यथार्थ बोध जिन्हें स्वायत्त है, वे पारगत हैं--भव-सागर को पार कर चुके हैं, वे परंपरागत हैं-परम्परा-क्रम से प्राप्त मोक्ष के उपायों का अवलम्बन लेकर वे संसार-समुद्र के पार पहुँचे हुए हैं, वे उन्मुक्त-कर्म-कवच हैं-जो पुण्यपाप रूप कर्मों का बख्तर उन पर लगा था, उस से वे सर्वथा मुक्त हुए हछुटे हुए हैं। वे अजर हैं- वृद्धावस्था से रहित हैं। वे अमर हैं--मरण से रहित हैं और वे असंग हैं-सब पर-पदार्थों के संसर्ग से रहित हैं अर्थात् सब प्रकार की आसक्तियों के प्रगाढ़ जाल से छुटे हुए हैं ॥२०॥ Perfected are they, they are enlightened, They have reached the end of life step by step. Liberated of all the bondages of karma, Freed of age, of death and of all pains. 20 णिच्छिण्णसव्वदुक्खा जाइजरामरणबंधणविमुक्का। . अव्वाबाहं सुक्खं अणुहोति सासयं सिद्धा ॥२१॥

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