Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 289
________________ 260 Uvavaiya Suttam Su. 40 सम्यग्दर्शन प्राप्त करेगा । वह अगार अवस्था - गृहवास का परित्याग कर अनगार धर्म - महाव्रतमय श्रमण जीवन स्वीकार करेगा अर्थात् श्रमण धर्म में प्रव्रजित - दीक्षित होगा । He will experience pure and right faith from the senior monks in the Śramana order and thereafter give up his household and be a homeless monk. से णं भविस्सइ अणगारे भगवंते ईरियासमिए जाव... गुत्तबंभयारी । तस्स णं भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्स अणते अणुत्तरे णिव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समप्यज्जिहिति । वे अनगार — श्रमण भगवान् दृढ़प्रतिज्ञ ईर्ष्या समिति - गमन, हलन चलन आदि क्रिया में सम्यक प्रवृत्त - यतनाशील... यावत् गुप्त ब्रह्मचारी - नियमोनियमपूर्वक ब्रह्मचर्य का संरक्षण- संपालन करने वाले होंगे । इस प्रकार की चर्या में सम्यक् रूप से प्रवर्तन - ऐसा उत्कृष्ट साधनामय जीवन जीते हुए उन भगवन्त दृढ़प्रतिज्ञ को अनन्त - अनन्त पदार्थों को जानने वाला, अनुत्तर - सर्वश्रेष्ठ, निव्यघात - व्यवधान रहित, निरावरण - आवरण से रहित, कृत्स्न - सर्वार्थग्राहक, प्रतिपूर्ण - अपने समग्र अविभागी अंशों से युक्त या समायुक्त केवलज्ञान, केवल दर्शन उत्पन्न होगा । He will become a monk, revered, ever alert in movements, till fully rooted in the rules of a celibate life. While living life like this, he will acquire infinite, unprecedented, unobstructed, uncovered, meaningful and complete supreme knowledge and faith. तए णं से दढपइण्णे केवली बहूई बासाई के वलिपरियागं पाउणहिति । केवलिपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए

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