Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 302
________________ उपवाइय सुत्तं सू० ४१ 273 who are pious, who pursue the spiritual path, who rate religion the highest, who preach religion, who consider religion to be palatable, who are dyed ( saturated) in religion, who mould conduct as prescribed in religion, who earn livelihood in a manner not contrary to the code, who are good in their behaviour, who practise what is right and who take delight in maintaining good attitude. साहूहिँ एकच्चाओ पाणाइवायाओ पडिविरया जावज्जीवाए एकच्चाओ अपडिबिरया एवं जाव...परिम्गहाओ। एकच्चाओ कोहाओ माणाओ मायाओ लोहाओ पेज्जाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ पेसुण्णाओ परपरिवायाओ अरतिरतीओ मायामोसाओ मिच्छादसणसल्लाओ पडिविरया जावज्जीवाए एकच्चाओ अपडिविरया। वे साधुओं के पास--साक्ष्य से अंशतः-स्थूल रूप में जीवन भर के लिये हिंसा से प्रतिविरत -निवृत्त होते हैं, अंशतः- सूक्ष्म रूप में अप्रतिविरत• अनिवृत्त होते हैं, इसी प्रकार...यावत् परिग्रह से, क्रोध से, मान से, माया से, लोभ से, प्रेय-अप्रगट माया व लोभजनित प्रिय या रोचक भाव से, द्वेष-अव्यक्त मान व क्रोध जनित अप्रिय या अप्रीति रूप भाव से, कलहलड़ाई-झगड़ा से, अभ्याख्यान--मिथ्या दोषारोपण से, पैशुन्य-चुगली, तथा पीठ पीछे किसी के होते-अनहोते दोषों का प्रगटीकरण, पर परिवादनिन्दा से, अरति-मोहनीय कर्म के उदय के परिणाम स्वरूप संयम में अरूचि रखना, रति-मोहनीय कर्म के उदय के परिणाम स्वरूप असंयम में सुख मानना, माया-मषा--छलपूर्वक झूठ बोलना, मिथ्या-दर्शन-शल्य-मिथ्याविश्वास रूप कांटे से स्थूल रूप में जीवन भर के लिये प्रतिविरत-निवत होते हैं और सूक्ष्म रूप से अप्रतिविरत-अनिवृत होते हैं। Who under the advice of monks desist for a while from slaughter but not for their whole life, till acqumullation of property. They desist for a while from anger, 18 ..

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