Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 326
________________ उववाइयं सुत्तं सू० ४२ समुद्घात के बाद की योग प्रवृत्ति Post - samudghāta Yoga-activities 297 गौतम : से णं भंते! तहा समुग्धायगए सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चहि परिनिव्वाहि सव्वदुक्खाणमंत करेइ ? महावीर : णो इण समट्ठे । से णं तओ पडिनियत्तइ । तओपडिनियत्तित्ता इहमागच्छइ । आगच्छित्ता तओ पच्छा मणजोगंपि जुंजइ । वयजोगंपि जुंजइ । कायंजोगंपि जुंजइ । I गौतम : भगवन् ! क्या कोई समुद्घातगत - समुद्घात करने के समय सिद्ध होते हैं ? बुद्ध होते हैं ? मुक्त होते हैं ? परिनिवृत्त होते हैं। अर्थात् परिनिर्वाण प्राप्त करते हैं ? सब दुःखों का अन्त करते हैं ? • महावीर : है, गौतम ! 1 यह आशय संगत नहीं है अर्थात् ऐसा नहीं होता है । वे उससे मुद्धात से परिनिवृत्त - वापस लौटते हैं। लौट कर अपने ऐहिक - मनुष्य शरीर में भाते हैं-- अवस्थित होते हैं। आकर उस के बाद मनयोग का प्रयोग करते है - मानसिक क्रिया करते हैं । वचन योग का प्रयोग भी करते हैं । तथा काय- योग का प्रयोग भी करते हैं । अर्था वाचिक तथा कायिक क्रिया भी करते हैं । Gautama': Bhante! Is one who has undergone samudghata perfected ? Is he enlightened ? Is he liberated ? Does. he attain nirvana ? Does he end all misery? Mahāvīra : No, this is not correct. He reverts from that.. Having reverted, he returns to this earth. Thereafter he performs the activity of the mind, of the speech and of the body. गौतम : मणजोगं जुंजमाणे किं सच्चमणजोगं जुंजइ ?

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