Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 329
________________ 300 Uvavaiya Suttam Si.43 ____वे काययोग को प्रयुक्त करते हुए कायिक-क्रिया में प्रवृत्त होते हुए आगमन करते हैं, स्थित होते हैं--ठहरते हैं, बैठते हैं, लेटते हैंसोते हैं, उल्लंघन करते हैं लांघते हैं, प्रलंघन करते हैं-विशेष रूप से लांघते हैं, उत्क्षेपण करते हैं-हाथ आदि को ऊपर करते हैं, अवक्षेपण करते हैं-हाथ आदि को नीचे करते हैं, तथा तिर्यक् क्षेपण करते हैंतिरछे अथवा आगे पीछे करते हैं, अथवा ऊंची, नीची एवं तिरछी गति करते हैं, प्रातिहारिक-वापस लौटाने योग्य उपकरण-पट्ट, शय्या, तथा . संस्तारक आदि लौटाते हैं ॥४२॥ While performing the activity of the body, he comes, stays, sits, lies, crosses, especially crosses, throws up, down or sideways ( i. e., he goes up or down or on either side ). He returns cushion, wooden plank, bed and duster which are returnable. 42 योग निरोध और सिद्धि Control of Yogas and Liberation गौतम : से णं भंते ! तहा सजोगी सिज्झिहिए जाव...अंतं करेहिइ ? महावीर : णौ इण8 सम8 । गौतम : भगवन् ! क्या सयोगी-मन, वचन, एवं काय योग से युक्त सक्रिय सिद्ध होते हैं ?...यावत् सब दुःखों का अन्त करते हैं ? महावीर : हे गौतम ! यह आशय संगत नहीं है--ऐसा नहीं होता है। Gautama : Bhante ! Can it be said that one with activity is perfected, till ends all misery ?

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