Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 309
________________ 280 Uvavāiya Suttamin Sq. 41 जाव...सव्वाओ परिग्गहाओ पडिविरया सव्वाओ कोहाओ माणाओ. मायाओ लोभाओ जाव...मिच्छादसणसल्लाओ पडिविरया। . जो ये ग्राम, आकर-नमक आदि के उत्पत्ति-स्थान,...यावत सन्निवेशझोपड़ियों से युक्त बस्ती, तथा सार्थवाह, सेना आदि के ठहरने के स्थान में मनुष्य होते हैं, जो इस प्रकार हैं : अनारम्भ--आरम्भ . से रहित, अपरिग्रह-परिग्रह से रहित, धार्मिक--श्रुत और चारित्र रूप धर्म का आचरण करने वाले,...यावत् धर्मपूर्वक आजीविका चलाने वाले, सुशील-- उत्तमशील-आचार युक्त, सुव्रत-श्रेष्ठ व्रत युक्त, सुप्रत्यानन्द-आत्मपरितुष्ट, वे साधुओं के पास-साक्ष्य से सब प्रकार की प्राणातिपात-हिंसा से प्रतिविरत-निवृत्त हो चुके हैं...यावत् संपूर्णत:-सब प्रकार के परिग्रह से निवृत्त हो चुके हैं। सम्पूर्णतः क्रोध से, मान से, माया से और लोभ से... यावत् मिथ्या दर्शन शल्य-मिथ्या-विश्वास रूप कांटे से प्रतिविरत–निवृत्त : हो चुके हैं। . In the villages, towns, till sannivesas, there are human beings, who kill not, accumulate not, who abide by the code of conduct, till who act according to religious prescription, who bear a good conduct, good vow, good attitude in which they take delight, who have enthusiasm, who are honest, who are wholly desisted from killing, from accumulation, till from anger, pride, attachment, greed, till thorn of wrong faith, who have separated the activities of their mind, words and body from these. सव्वाओ आरंभसमारंभाओ पडिविरया। सव्वाओ करणकारावणाओ पडिविरया । सव्वाओ पयणपयावणाओ पडिविरया। सव्वाओ कुट्टण-पिट्टण-तज्जण-तालण-वहबंध-परिकिलेसाओ पडिविरया। सव्वाओ ण्हाण-मद्दण-वण्णगविलेवण सद्दफरिस-रसरूवगंध-मल्लालं-काराओ पडिविरया। जेयावण्णे तहप्पगारा सावज्ज

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