Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 287
________________ 258 Uvavaiya Suttarn Sa. 40 ___तब माता-पिता दृढ़प्रतिज्ञ बालक को बहत्तर कलाओं में पण्डित-मर्मज्ञ, ...यावत् सर्वथा भोग-समर्थ जान कर विपुल–प्रचुर अन्न भोग-खाने योग्य भोज्य पदार्थ, पान भोग-उत्तम पेय पदार्थ, लयन भोग-सुन्दर गह आदि में निवास, वस्त्र भोग-उत्तम वस्त्र, शयन भोग-उत्तम शय्या-सोने । आराम करने योग्य सुखप्रद सामग्री का उपभोग करने का आग्रह करेंगे। When his parents will realise that the boy has acquired 72 arts, till acquired full capacity to enjoy life, they will provide him with huge supply of food, drink, residence, clothes and couches. तए णं से दढपइण्णे दारए तेहिं विउलेहिं अण्णभोगेहिं जाव... सयणभोगेहिं णो सज्जिहिति णो रज्जिहिति णो गिझिहिति णो अझोववज्जिहिति । तब वह दृढ़प्रतिज्ञ बालक अन्न भोग...यावत् शयन भोग-उत्तम शय्या-बिछौने आदि सुखप्रद सामग्री के भोगों में आसक्त नहीं होगा, रागरञ्जित अर्थात् अनुरक्त नहीं होगा, . गृद्ध--लोलुप, नहीं होगा, मूच्छित-मोहित नहीं होगा, अध्यवसित-मन नहीं लगायेगा। . But the said Dşðhapratijña will feel no attachment for the huge supply of food, will have no hankering for them, por seek joys not provided, nor merge in them. से जहाणामए उप्पले इ वा पउमे इ वा कुसुमे इ वा नलिणे इ वा सुभगे इ वा सुगंधे इ वा पोंडरीए इ वा महापोंडरीए इ वा सतपत्ते इ वा सहस्सपत्ते इ वा सतसहस्सपत्ते इ वा पंके जाए जले संवुड्डे णोवलिप्पइ पंकरएणं णोवलिप्पइ जलरएणं एवमेव दढ़पइण्णे

Loading...

Page Navigation
1 ... 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358