Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 267
________________ 238 Uvavaiya Suttam Su. 40 इस प्रकार संलेखना के द्वारा जिनके शरीर और कषाय ये दोनों ही कृश हो रहे थे, उन परिव्राजकों ने आहार तथा पानी का त्याग कर दिया । कटे हुऐ वृक्ष जैसी निश्चेष्टावस्था स्वीकार कर मृत्यु की कामना न करते हुए शान्तभाव से वे अवस्थित रहे। तब उन परिव्राजकों ने बहुत से भक्त -- चारों प्रकार के आहार ( अशन, पान, खादिम और स्वादिम) अनशन से छिन्न किए अर्थात् अनशन द्वारा चारों प्रकार के आहारों से सम्बन्ध विच्छेद कर दिया या बहुत से भोजन-काल अनशनअनाहार द्वारा व्यतीत किए। वैसा कर दोषों की आलोचना की अर्थात् दोषों का निरीक्षण एवं परीक्षण किया। उनसे प्रतिक्रान्त - परावृत हुए अर्थात् उन दोषों से हटे । समाधि - शान्ति, चित्त-विशुद्धि दशा प्राप्त की । मृत्यु समय आने पर शरीर त्याग कर ब्रह्मलोक कल्प में देव के. रूप में उत्पन्न हुए । प्राप्त देवलोक के अनुरूप उनकी गति बतलाई गई । उनकी स्थिति - आयुष्य - परिमाण दश सागरोपमं का बतलाया गया है । वे परलोक के आराधक हैं। अवशेष वर्णन पूर्ववत जानना चाहिये || १३ ।। सू० ३९ ।। So saying, they gave up their consciousness of the physical existence, all sorts of food and drink and became motionless like a tree without coveting for death. The said Parivrājakas thus passed many a meal-time without food, and then having kept carefully apart from lapses and being in a totally tranquil state of mind, they passed away at certain point in the eternal time, to be born as celestial beings in Brahmaloka, with a span of stay as long as ten sägaropamas, with propitiation of life thereafter, the rest as before. 13, Su. 39 अम्बड़ परिव्राजक Amvada Parivrajaka गौतम : बहुजणे णं भंते! अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ - एवं खलु अम्मडे परिव्वायए


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