Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 275
________________ 246 Uvavaiya Suttam Sh. 40 सेऽविय दिण्णे णो चेव णं अदिण्णे । सेऽविय दंतहत्थपायचरुचमसपक्खालणट्टयाए पिवित्तए वा णो चेव णं सिणाइत्तए । अम्बड़ को मागध मान-मगध देश के तोल के अनुसार आधा आढक जल लेना कल्पता है। उसके लिये कल्पनीय है। वह जल भी प्रवहमान बहता हुआ हो, किन्तु न बहता हुआ न हो...यावत्, वह परिपूत-वस्त्र से छना हुआ हो तो कल्पनीय है, अनछना नहीं। वह भी सावद्यअवद्य-पाप सहित समझ कर, निरवद्य-पाप रहित समझ कर नह । सावद्य भी-वह उसे भी सजीव-जीव युक्त समझ कर ही लेता है, अजीव-- जीवरहित समझ कर नहीं। वैसा जल भी दत्त-दिया हुआ ही कल्पता है, अदत्त-न दिया हुआ नहीं। वह भी हाथ, पैर, भोजन का पात्र, काठ की कुड़छी धोने के लिये अथवा. पीने के लिये ही कल्पता है, स्नान के लिये नहीं। Amvada accepts water no more than half a Māgadha Adhaka, from a flow, not a pool, till passed through a piece of cloth, not otherwise, pure, not impure, which has life, but not non-life, that too offered, not unoffered; to wash and clean teeth, hands, feet, bowls, etc., and to drink,,but not to bathe. - अम्मडस्स कप्पइ मागहए य आढए जलस्स पडिग्गाहित्तए । सेऽविय वहमाणे जाव...दिन्ने नो चेव णं अदिण्णे । सेऽविय सिणाइत्तए णो चेव णं हत्थपायचरुचमसपक्खालणट्ठयाए पिवित्तए वा। अम्मडस्स णो कप्पइ अन्नउत्थिया वा अण्णउत्थियदेवयाणि वा अण्णउत्थियपरिग्गहियाणि वा चेइयाइं वंदित्तए वा णमंसित्तए वा जाव...पज्जुवासित्तए वा णण्णत्थ अरिहंते वा अरिहंतचेइयाइं वा । अम्बड़ को मगध देश के तोल के अनुसार केवल एक आढ़क जल लेना कल्पता है। वह भी प्रवहमान-बहता हुआ...यावत्, दिया हुआ कल्पता है,

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