Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 265
________________ 236 Uvavaiya Suttam sh: 39 सव्वं असणं पाणं खाइमं साइमं चउन्विहंपि आहारं पच्चक्खामो जावज्जीवाए। हम इस समय श्रमण भगवान् महावीर के साक्ष्य से सब प्रकार की हिंसा का जीवन भर के लिये त्याग करते हैं। इसी प्रकार...यावत् सब प्रकार के परिग्रह का जीवन भर के लिये त्याग करते हैं। सब प्रकार के क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेम-अव्यक्त माया या रोचक भाव, द्वेष-अप्रगट मान या अप्रीति रूप भाव, कलह-लड़ाई-झगड़ा, अभ्याख्यान-मिथ्यापूर्ण दोषारोपण, पैशुन्य-चुगली, होते-अनहोते दोषों का प्रगटीकरण, पर-परिवाद-निन्दा, रति-असंयम में रुचि दिखाना, अरति-संयम में अरुचि रखना, मायामषाछलपूर्वक झूठ बोलना, मिथ्या दर्शन शल्य-मिथ्याविश्वास रूप कांटा, अकरणीय योग-नहीं करने योग्य मन, वचन एवं शरीर की प्रवृत्ति का जीवन भर के लिये त्याग करते हैं। अशन-भोज्य पदार्थ, पान--पानी, खादिम-फल, मेवा आदि पदार्थ, स्वादिम-पान, सुपारी, मुखवास का पदार्थ--इन चार प्रकार के आहार का जीवन भर के लिये त्याग करते हैं। "Now to śramaņa Bhagavān Mahāvīra we renounce injury to life in all respects, till all accumulation, all types of anger, pride, attachment, greed, malice, infight,...till the thorn of wrong faith, we renounce all activities not worth perpetrating we renounce all food, drink, dainties and delicacies, and that for good. जंपि य इमं सरीरं इ8 कंतं पियं मणुण्णं मणामं येज्जं वेसासियं संमतं बहुमतं अणुमतं भंडकरंडगसमाणं मा णं सीयं मा णं उण्हं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं वाला मा णं चोरा मा णं दंसा मा णं मसगा मा णं वातियपित्तियसंनिवाइयविविहा रोगातंका परीसहोवसग्गा फुसंतु-त्ति कटु एयपि णं चरिमेहिं ऊसासणीसासेहिं वोसिरामि।

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