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उववाइय सुत्तं सू० १५
of these were initiated into monkhood hardly a fortnight back, some a month back, some two, three, till eleven months back, some one, two, three years back, till some who were initiated many years back. 14
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निर्ग्रन्थों की ॠद्धि और तप
Nirgranthas-their Powers and Penances
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे निग्गंथा भगवंतो अप्पेगइआ आभिणिबोहियणाणी जाव... केवलणाणी अप्पेगइआ मणबलिआ वयबलिआ कायबलिआ अप्पेगइआ मणेणं सावाणुग्गह- समत्था वएणं सावाणुग्गह-समत्था काएणं सावाणुग्गह-समत्था अप्पेiइआ खेलोसहिपत्ता एवं जल्लो सहि पत्ता विप्पोसहिपत्ता आमोसहिपत्ता सव्वोसहिपत्ता अप्पेगइआ कोट्टबुद्धी एवं बीयबुद्धी पडबुद्धी अप्पेगइआ पयाणुसारो अप्पेगइआ संभिन्नसोआ • अप्पेगइआ खीरासवा अप्पेगइआ महुआसवा अप्पेगइआ सप्पिआसवा अप्पेगइआ अक्खीणमहाणसिआ एवं उज्जुमती अप्पेगइआ विउलमई विउव्वणिडिपत्ता चारणा विज्जाहरा आगासातिवाइणो ।
उस काल ( वर्तमान अवसर्पिणी ) उस समय ( चतुर्थ आरे) में श्रमण भगवान् महावीर के अन्तेवासी शिष्य बहुत से निर्ग्रन्थ बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह से रहित, संयम एवं तप से आत्मा को भावित करते हुए विहार करते थे । उनमें कई श्रमण आभिनिबोधिक ज्ञानी - मतिज्ञानी, जाव शब्द से श्रुतज्ञानी, अवधि ज्ञानी और मनःपर्याय ज्ञानी पदों का संग्रह किया गया है, तथा केवल ज्ञानी थे । अर्थात् कई दो ज्ञान - मतिज्ञान तथा श्रुतज्ञान के धारक थे, कई तीन ज्ञान - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और मनःपर्याय ज्ञान अथवा मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान के धारक थे, कई चार ज्ञानमतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्याय ज्ञान के धारक थे तथा