Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 218
________________ उववाइय सुत्तं सू० ३४ 189 अनगार धर्म - इस संसार में जो साधक सर्वतः - द्रव्य तथा भाव से सम्पूर्ण रूप से - सर्वात्म भाव से सावद्य कार्यों का त्याग करता हुआ मुण्डित होकर गृहवास से निकल कर अनगार दशा - मुनि अवस्था में प्रव्रजित होता है वह सम्पूर्णतः प्राणातिपात - हिंसा से विरत होता है, मृषावाद विरमण - असत्य से विरत होता है, अदत्तादान विरमण - चोरी से विरत होता है, मैथुन विरमण - मैथुन से विरत होता है, परिग्रह विरमण परिग्रह से विरत होता है, रात्रि भोजन विरमण - रात्रि भोजन से विरत होता है । भगवान् ने कहा आयुष्मान् ! यह अनगार सामायिक - श्रमणों के लिये सैद्धान्तिक अथवा समाचरणीय धर्म कहा गया है। इस धर्म की शिक्षा में - अभ्यास या आचरण में उपस्थित - प्रयत्नशील रहते हुए निर्ग्रन्थ- श्रमण या निर्ग्रन्थी श्रमणी विचरण करते हुए आज्ञा - अरिहन्त देशना के आराधक होते हैं । One who in this world, in all respects, and with all sincerity, gets tonsured, gives up his home and enters into the life of a homeless monk, desists from inflicting harm / slaughter on any form of life, from falsehood, from usurpation, from sex behaviour and from the accumulation of property. He desists from the intake of food at night. Such is the code or essential for a homeless monk. A tie-free man or woman planted on this path is a true follower,-such is the instruction. अगारधम्मं दुवालसविहं आइक्खइ । तं जहा -- पंच अणुब्वयाई तिष्णि गुणवयाई चत्तारि सिक्खावयाई। पंच अणुव्वयाई, तं जहा — थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं थूलाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं सदारसंतोसे इच्छापरिमाणे । तिष्णि गुणव्वयाई तं जहा -- अणत्थदंडवे रमणं दिसिव्वयं उवभोगपरिभोगपरिमाणं । चत्तारि सिक्खावयाइं तं जहा – सामाइअं देसावगासियं पोसहोव वासे अतिहि-संयअस्स विभागे । अपच्छिमा मारणंतिआ संलेहणाजूसणाराहणा अथमाउसो ! अगारसामइए धम्मे पण्णत्ते । अगार धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए

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