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उववाइय सुत्तं सू० २० आदि के द्वारा परिचर्या सेवा करना, (६) देश कालज्ञता-देश और समय को संलक्ष्य में रखकर ऐसा आचरण करना चाहिये जिससे अपना मूलभूत-ध्येय व्याहत न हो, (७) सर्वार्थाप्रतिलोमता-समस्त अनुष्ठेयविषयों में, आराध्य सम्बन्धी सभी प्रयोजनों में विपरीत-आचरण का निवारण करना, आचरण को अनुकूल बनाना। यह लोकोपचार विनय का स्वरूप है। इस प्रकार यह विनय का स्वरूप सम्पन्न होता है।
What is humility of behaviour to others ?
It has seven types, viz., to sit near the spiritual guide, to obey the wishes and orders of elders, to serve and show respect in order to acquire knowledge, to be grateful, to take care of the aged monks ; and monks who are ill, to behave according to time and place in such a manner that one does not do harm to his goal and to avoid in every case a behaviour which is not normal. Such is humility of behaviour to others. Such is humility.
- से किं तं वेआवच्चे ?
वेआबच्चे दसविहे पण्णत्ते । तं जहा--आयरियवेआवच्चे उवज्झायवेआवच्चे सेहवेआवच्चे गिलाणवेआवच्चे तवस्सिवेआवच्चे थेरवेआवच्चे साहम्मिअवेआवच्चे कुलवेआवच्चे गणवेआवच्चे संघवेआवच्चे । से तं वेआवच्चे।
वह वैयावृत्य क्या है ? वह कितने प्रकार का है ?
वैयावृत्य के दस भेद कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं : (१) आचार्य का वैयावृत्य, (२) उपाध्याय का वैयावृत्य, (३) नव-दीक्षित श्रमण का वैयावत्य, (४) रुग्णता आदि से पीड़ित श्रमण का वैयावृत्य, (५) तेला, चौला आदि तपनिरत तपस्वी श्रमण का वैयावृत्य, (६) वय, श्रुत, दीक्षा पर्याय में ज्येष्ठ स्थविर श्रमण का वैयावृत्य, (७) सार्मिक-श्रमम