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Uvavaiya Suttam Si. 27
को सुनने से और विपुल-विस्तृत अर्थ के ग्रहण करने से होने वाले फल की तो बात ही क्या है ?
“When even a single, noble, well-spoken and pious word from Bhagavān Mahāvira gives great merit, the merit derived from listening and accepting his whole sermon must indeed be very great.
तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइअं ( विणएणं ) पज्जुवासामो।
"अतः हे देवानुप्रियों! अच्छा हो, हम सब वहाँ जाएँ, श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन करें, नमन करें, उनका सत्कार करें, सम्मान करें, भगवान् कल्याण के हेतु रूप हैं, पाप-नाश के हेतु रूप हैं, दिव्य स्वरूप की प्राप्ति में हेतु रूप हैं, और ज्ञान-प्राप्ति के हेतु रूप हैं, हम सब विनयपूर्वक उनकी पर्युपासना-सान्निध्य प्राप्त करें।
"So Oh beloved of the gods ! , Let us all go to Sramana Bhagavān Mahavira. - Let us pay him homage. Let us pay him compliments. Let us show him respect. Let us worship this great personality with due humility who helps us to destroy sin and to acquire perfection, knowledge and bliss.
एतं णे पेच्च भवे इहभवे अ हियाए सुहाए खमाए णिस्सेअसाए आणुगामिअत्ताए भविस्सइ ।
“यह ( वन्दना-नमस्कार आदि ) परभव-जन्म-जन्मान्तर में और इस भव-वर्तमान जीवन में हमारे लिये हितप्रद, सुखप्रद, क्षान्तिप्रद तथा निश्रेयप्रद-मोक्षप्रद सिद्ध होगा।"