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Uvavaiya Suttam Sa. 31 कुट्टिमतले रमणिज्जे पहाणमंडवं'स णाणामणिरयणभत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहणिसण्णे सुद्धोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुहोदएहिं पुणो पुणो कल्लाणगपवरमज्जणविहीए मज्जिए।
स्नानगृह में प्रविष्ट होकर वह, वह स्नानघर, मोतियों से बनी हुई जालियों द्वारा सुन्दर प्रतीत होता था या सब ओर जालियाँ होने से वह. ( स्नानघर ) बड़ा ही रमणीय था। उसका आंगण अनेक प्रकार की मणियों और रत्नों से खचित था। उसमें बड़ा ही मनोरम स्नानमंडप था। उसकी भीतों पर तरह-तरह का मणियों एवं रत्नों को चित्रात्मक ढंग या रूप में जड़ा गया था। ऐसे स्नानगृह-स्नानमंडप में प्रविष्ट होकर राजा वहाँ स्नान के लिये अवस्थापित ( रखी गई ) स्नानपीठ--स्नान हेतु बैठने की चौकी पर सुखपूर्वक बैठा। (फिर ) शुद्धोदक-शुद्ध, चन्दन आदि सुगन्धित वस्तुओं के रस से बनाया गया ऐसा जल, फूलों के रस से मिश्रित शुभ अथवा सुखप्रद-न अधिक उष्ण, न अधिक शीतल जल से आनन्दप्रद, अति श्रेष्ठ स्नान विधि द्वारा बार-बार अच्छी तरह से स्नान किया।
The bathroom was beautiful with fine lattice-work whose floor was studded with sundry precious stones and whose walls were also similarly decorated and there he sat comfortably on a stool meant for use at the bath. Then he took his bath, pleasant and auspicious, with water brought from boly places or with water pleasant for touch, with water which was scented, with water containing the essence of flowers and with pure water.
तत्थ कोउअसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवरमज्जणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइयलूहिअंगे सरससुरहिगोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते। अहय . सुमहग्धदूसरयणसुसंबुए सुइमालावण्णविलेवणे आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियहारद्धहारतिसरयपालंबपलंबमाणकडिसुत्तेसुकयसोभ । पिणद्ध