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Uvavaiya Suttam Sh. 34
वच्छा जाव..पभासमाणा कप्पोवगा गतिकल्लाणा आगमेसिभद्दा जाव...पडिरूवा ।
वे देवलोक विपुल' ऋद्धियों से परिपूर्ण, यावत् ( अत्यन्त द्युति, अत्यन्त बल एवं अत्यन्त यशोमय ) अत्यधिक सुखमय, दूर गति से युक्त तथा लम्बी स्थिति वाले होते हैं। वहाँ ( देवलोक में ) देव के रूप में वे जीव विपुल . ऋद्धि से सम्पन्न...यावत् चिरस्थितिक-दीर्घ आयु वाले होते हैं। उनके वक्षःस्थल हारों से सुशोभित होते हैं।...यावत् वे अपनी दैहिक-प्रभा से दशों-दिशाओं को प्रभासित करते हैं-प्रभा फैलाते हैं। वे कल्पोत्पन्न देवलोक में देवशय्या से युवा रूप में उत्पन्न होते हैं। वे उत्तम देव गति के धारक, भविष्य काल में भद्र-कल्याण अथवा निर्वाण रूप अवस्था को प्राप्त करने वाले होते हैं।...यावत् वे प्रतिरूप असाधारण रूपवान् होते हैं।
· These heavens give a great fortune, till great bliss, with access till the Anuttara-vimānas, and a long span of life. So such divine beings enjoy a great fortune till a long span of life. Their chests are bedecked with necklaces, till they spread the lustre of their bodies in all the ten directions. Born in a heaven, they have beneficial existence and are marked for future liberation, till as aforesaid. All this is the outcome of the words of the Nirgranthas.
तमाइक्खइ। एवं खलु चउहि ठाणेहिं जीवा णेरइअत्ताए कम्मं पकरंति। गेरइअत्ताए कम्मं पकरेत्ता जेरइसु उववज्जंति तं जहा-महारंभयाए महापरिग्गहयाए पंचिदियवहेणं कुणिमाहारेणं ।
भगवान् महावीर ने प्रकारान्तर से धर्म का प्रतिपादन इस प्रकार किया। जीव चार स्थानों-कारणों से नैरयिक भव--नरक योनि का आयुष्य बन्ध