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उववाइय सुत्तं सू० २० ।
103 शुक्ल ध्यान के चार आलम्बन बतलाये गये हैं, जो इस प्रकार हैं : (१) क्षान्ति-सहनशील, क्षमाशील होना, (२) मुक्ति-लोभ आदि के बन्धन से मुक्त होना, (३) आर्जव ऋजुता, सरलता, (४) मार्दवकोमलता, निरभिमानता।
Pure meditation has four aids, viz., endurance, greedless ness, lack of hypocracy and lack of pride.
सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ। तं जहा -अवायाणुप्पेहा असुभाणुप्पेहा अणंतवित्तिआणुप्पेहा विप्परिणामाणुप्पेहा। से तं झाणे ।
शुक्लध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं-भावनाएँ बतलाई गई हैं, जो इस प्रकार हैं: (१) अपायानुप्रेक्षा--आत्मा के द्वारा आबद्ध कर्मों के कारण उत्पद्यमान अवांछित अनर्थों के सन्दर्भ में बार-बार चिन्तन, (२ अशुभानुप्रेक्षा-संसार की अशुभता का पुनः पुनः चिन्तन करना, (३) अनन्तवत्तितानुप्रेक्षा-संसार-चक्र की अनन्तवृत्तिता अन्त काल तक चलते रहने की वृत्ति के विषय में बार बार चिन्तन, (४) विपरिणामानुप्रेक्षाप्रतिपल-प्रतिक्षण विविध परिणामों में परिवर्तित होती वस्तुस्थिति अर्थात् वस्तु-जगत् के सम्बन्ध में पुनः-पुनः चिन्तन करना। इस प्रकार यह ध्यान का स्वरूप कहा गया है।
Four types of thinking are helpful to pure meditation, viz., to think again and again of karma influx into the soul, to think again and again of the ills in the world, to think again and again of migration from one existence to another, and to think again and again of the continuous change in every moment of all objects. Such is meditation.
से किं तं विउस्सग्गे ?
विउस्सग्गे दुविहे पण्णत्ते । तंजहा-दव्व-विउस्सग्गे भाव-विउस्सग्गे अ।