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Uvavaiya Suttam Su. 20
What is unwholesome humility of the mind?
It is as follows: to entertain sin in the mind, to have a thought in the mind about physical, instrumental, etc., activities, to have a mind which is rough, harsh, cruel, devoid of affection, attracting karma influx, to entertain thought to cut the limb of a living being, to torture him, to cause him deathlike pain / to deprive him of his belongings, even to kill him, These are unwholesome.
से किं तं सत्य-मणोविणए ?
पसत्थ- मणोविणए तं चेव पसत्यं णेयव्वं । एवं चेव वइविणओsa एएहिं एहिं चेव णेअव्वो । से तं वइविणए ।
वचन विनय
वह प्रशस्त मनोविनय क्या है ? वह कितने प्रकार का है ? जैसा अप्रशस्त मनोविनय का वर्णन किया गया है, उसी के आधार पर प्रशस्त मनोविनय का स्वरूप समझना चाहिये । अर्थात् प्रशस्त मनोविनय, अप्रशस्त मनोविनय से सर्वथा बिपरीत होता है । को भी इन्हीं पदों से समझना चाहिये । अर्थात् वचन विनय अप्रशस्त वचन विनय तथा प्रशस्त वचन विनय के रूप में दो प्रकार का कहा गया है । अप्रशस्त मन और प्रशस्त मन के जो-जो विशेषण हैं वे क्रमशः अप्रशस्त वचन तथा प्रशस्त वचन के साथ जोड़ देने चाहिये । इस प्रकार यह वचन - विनय का स्वरूप कहा गया है ।
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What is wholesome humility of the mind ?
Just the reverse of the aforesaid items. So also humility of expression, to be stated in similar terms.
से किं तं कायविणए ?
काय विणए दुविहे पण्णत्ते । तं जहा -- पसत्थ - कायविणए अपसत्थ- कार्याविणए ।