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उववाइय सुत्तं सू० १९ .. राग-दोस-निग्गहो वा। चक्खिदिय - विसय - पयार - निरोहो वा चक्खिदिय-विसय-पत्तेसु अत्थेसु राग-दोस-निग्गहो वा। पाणिंदियविसय-पयार-निरोहो वा घाणिदिय-विसय-पत्तेसु अत्थेसु राग-दोसनिग्गहो वा । जिभिंदिय-विसय-पयार-निरोहो वा जिभिंदियविसय-पत्तेसु अत्थेसु राग-दोस-निग्गहो वा। फासिंदिय-विसयपयार-निरोहो वा फासिदिय-विसय-पत्तेसु अत्थेसु राग-दोस-निग्गहो वा। से तं इंदिय-पडिसंलीणया ।
वह इन्द्रिय प्रतिसंलीनता क्या है ? उसके कितने भेद हैं ?
इन्द्रिय प्रतिसंलीनता पाँच प्रकार की बतलाई गई है, जो इस प्रकार हैं : (१) श्रोत्रेन्द्रिय विषय प्रचार निरोध-कानों के विषय शब्द में प्रवृत्ति का निरोध करना अर्थात् शब्द श्रवण न करना या श्रोत्रेन्द्रिय को शब्द रूप में प्राप्त प्रिय और अप्रिय, अनुकूल एवं प्रतिकूल विषयों में राग-द्वेष के संचार का निरोध करना, उसे रोकना, (२) चक्षुरिन्द्रिय विषय प्रचार निरोध-आँखों के विषय रूप में प्रवृत्ति को रोकना अर्थात् रूप नहीं देखना या अनायास दृष्ट प्रिय व अप्रिय, सुन्दर और असुन्दर रूपात्मक विषयों से उदासीन रहना, उनमें राग-द्वेष के संचार को रोकना, (३) घाणेन्द्रिय विषय प्रचार निरोध-नाक के विषय सुरभि गन्ध और दुरभि गन्ध में प्रवृत्ति को रोकना या घाणेन्द्रिय को प्राप्त सुगन्ध-दुर्गन्ध स्वरूप विषयों में राग और द्वेष के संचार का निरोध करना, उन विषयों से उदासीन रहना, (४) जिह्वेन्द्रिय विषय प्रचार निरोध-जीभ के विषय रस में प्रवृत्ति को रोकना या जीभ से प्राप्त स्वाद-अस्वाद रसात्मक विषयों में राग-द्वेष के संचार को रोकना, उस ओर से उदासीन रहना, (५) स्पर्शेन्द्रिय विषय प्रचार निरोध-त्वचा के विषय स्पर्श में प्रवृत्ति को रोकना या स्पर्शेन्द्रिय को प्राप्त अनुकूल-प्रतिकूल एवं सुखात्मक-दुःखात्मक विषयों में राग-द्वेष के संचार का निरोध करना, उस ओर से उदासीन रहना। यह इन्द्रिय प्रतिसंलीनता का स्वरूप है ।
What is the restraint of the organs of sense ?