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उववाइय सुतं सू० १०
षियों, द्वारपालों, अमात्यों - राज्य कार्यों में परामर्शकों, सेवकों— राजसभा में आसन्न सेवारत पुरुषों, नागरिकों, व्यापारियों, धनिकों, सेनापतियों ( रथ, घोड़ा, हाथी, पैदल सेना के अधिनायकों ), सार्थवाहों ( व्यापारियों के समूह को साथ में लेकर देश-विदेश में भ्रमण करने वालों), दूतों – दूसरों या राजा के आदेश - संदेश पंहुचाने वालों, सन्धिपालों— राज्य सीमाओं के रक्षकों - इन विशिष्ट व्यक्तियों से चारों ओर से घिरा हुआ बैठा था - अवस्थित था । तात्पर्य यह है कि राजा कूणिक विशिष्ट जनों से चारों ओर से घिरा हुआ बहिर्वर्ती राजसभा भवन में अवस्थित था || ९॥
In that period, at that time, king Kūnika, son of Bhambhasara was seated in the open court surrounded by many leaders of gana, danda, kings, crown-princes, rich merchants who were the recipients of jewelled shawls from the monarch, leaders of māndava, kinsmen, ministers, ministers of cabinet rank, astronomers, police-chiefs, amātyas, valets, attendants, officers, merchants, fresthis, army-commanders, foreign traders, ambassadors and border guards. 9
भगवान महावीर का वर्णन
Description of Bhagavan Mahavira
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तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसुत्तमे पुरिससीहे पुरिसवर - पुंडरीए पुरिसवर - गंधहत्थी अभयदए चक्खुदए मग्गदए सरणदए जीवदए दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा धम्म-वर-चाउरंत - चक्कबट्टी अप्प डिहय-वर-नाण- दंसण-धरे विअट्टच्छउमे जिणे जाणए तिष्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोए सव्वण्णू सव्व-दरिसो सिव-मयल - मरुअप्र-मणंत-मक्खय-मव्वावाह-मपुणराव त्तिअं सिद्धि - गइ - णामधेयं ठाणं संपाविउकामे अरहा जिणे केवली ।
उस काल ( वर्तमान अवसर्पिणी ) उस श्रमण भगवान महावीर आदिकर - अपने युग
समय ( चतुर्थ आरे) में श्रुतधर्म के आद्य प्रवर्तक,