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Uvavāiya Suttam Sū. 11
प्रवृत्ति निवेदक को जब यह (प्रभु महावीर के पदार्पण की) बात ज्ञात हुई वह हर्षित और संतुष्ट चित्त हुआ । उसने अपने मन में आनन्द एवं प्रसन्नता का अनुभव किया। अत्यन्त सौम्यभाव से सम्पन्न और हर्षातिरेक से उसका हृदय खिल उठा। उसने स्नान किया और बलिकर्म ( नित्य नैमित्तिक कृत्य ) किये, कौतुक-शारीरिक सज्जा की दृष्टि से आँखों में अंजन आंजा, ललाट पर तिलक लगाया, मंगल-दही, अक्षत आदि से मंगल विधान किया, प्रायश्चित्त-दुःस्वप्न आदि दोषों के निवारण-हेतु चंदन-कुंकुम लगाया, राजसभा में प्रवेशोचित उत्तम वस्त्रों को सुन्दर ढंग से पहनकर, संख्या में कम पर बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को विभूषित किया, फिर वह अपने घर से बाहर निकला।
Having heard about the arrival of Bhagavān Malāvira, the officer ( of king Kūņika ) who was entrusted with the duty of reporting the daily activities: ( movements) of Bhagavān Mahāvīra became highly delighted and pleased, was immensely happy, with his mind full of joy, 'with a 'noble mind, with his heart expanded in glee. He took his bath, performed necessary rights, propitiations and atonements, put on clean clothes in a decent manner, decorated his body with ornaments light but costly, and then moved out of his house.
सआओ गिहाओ पडिणिक्खमित्ता चंपाए णयरीए मझमझेणं जेणेव कोणियस्स रण्णो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव कूणिए राया भंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ । उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ । वद्धावित्ता एवं वयासी--जस्स णं देवाणुप्पिया दंसणं कखंति जस्स णं देवाणुप्पिया दंसणं पीहंति जस्स णं देवाणुप्पिया दसणं पत्थंति जस्स णं देवाणुप्पिया सणं अभिलसंति जस्स णं देवाणुप्पिया णाम-गोत्तस्स वि सवणयाए हट्टतुट्ठ जाव...हिअया भवंति, से णं समणे भगवं महावीरे पुवाणुपुद्वि चरमाणे गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे चंपाए णयरीए उवणगरगाम उवागए चंपं णगरि