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Uvavāiya Suttam Sü. 12
right one and placed it on the ground, and then touched the ground thrice with his forehead. Then be rose up a little and raised his hands which were fixed under the weight of bangles and bracelets, folded them, touched his forehead with his fingers and prayed :
. णमोऽत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं आइगराणं तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं परिसुत्तमाणं पुरिस-सीहाणं पुरिसवर-पुंडरिआणं 'पुरिसवर-गंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोअगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाणं बोहिदयाणं धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवर-चाउरंत-चक्कवट्टीणं दीवो ताणं सरणं गई पइट्टा अप्पडिहय-वर-ताण-दसण-धराणं विअट्ठछउमाणं जिणाणं जावयाणं 'तिण्णाणं तारयाण बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोअगाणं सव्वन्नूणं सव्वदरिसीण सिव-मयल-मरुअ-मणंतमक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति-सिद्धिगइ-नामधेयं ठाणं संपत्ताणं । नमोऽत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स आदिगरस्स तित्थगरस्स जाव...संपाविउ मस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स। वंदामि णं भगवंतं तत्थ गयं इह गते पासइ मे ( मे से ) भगवं तत्थगए इहगयंति कटु वंदामि णमंसति ।
"अर्हत-कर्म शत्रुओं के नाशक, या इन्द्रादि द्वारा पूजित, भगवान्आध्यात्मिक ऐश्वर्य से सम्पन्न, आदिकर-अपने युग में श्रुत धर्म के आद्यप्रवर्तक, तीर्थकर-श्रमण-श्रमणी-श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ रूपी तीर्थ के कर्ता, स्वयं संबुद्ध-बिना किसी के उपदेश से स्वयं बोध प्राप्त, पुरुषोत्तम-सभी पुरुषों में अतिशय आदि से उत्तमोत्तम, पुरुषसिंह-पुरुषों में आत्म-शौर्य गुण से सिंह के समान, पुरुषवरपुण्डरीक-सर्व प्रकार की मलिनता से रहित होने के कारण पुरुषों में उत्तम श्वेत कमल के समान निलॅप, पुरुषवरगन्धहस्ती-उत्तम गन्ध हस्ती के समान, जिस प्रकार गन्धहस्ती के पहुंचते ही सामान्य हाथी भाग