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उववाइय सुत्तं सू० ४
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से णं असोग-वर-पायवे अण्णेहिं बहूहिं तिलएहिं लउएहिं छत्तोवेहिं सिरीसेहिं सत्तवण्णेहिं दहिवण्णेहिं लोद्धेहिं धवेहिं चंदणेहिं अज्जुणेहिं णीवेहिं कुडएहि सव्वेहिं फणसेहि दाडिमेहि सालेहिं तालेहिं तमालेहिं पियएहिं पियंगूहिं पुरोवगेहिं रायरुक्खे हिं मंदिरुक्खेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । ते णं तिलया लवइया जाव... मंदिरुक्खां कुस - विकुस - विसुद्ध - रुक्खमूला मूलमंतो कंदमंतो, एएसिं वण्णओ भाणियव्वो जाव... सिबिय - पविमोयणा सुरम्मा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ।
वह श्रेष्ठ अशोकवृक्ष तिलक, लकुच, छत्रोप, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोध, धव, चन्दन, अर्जुन, नीप, कुटज, कदम्ब, सव्य, पनस, दाडिम, शाल, ताल, तमाल, प्रियक, प्रियंगु, पुरोपग, राजवृक्ष, नन्दिवृक्ष इन अनेक अन्य वृक्षों से सब ओर - चारों ओर से घिरा हुआ था। वे तिलक, लकुच ( से लगाकर ) नन्दि ( तक के ) वृक्षों की जड़ें, डाभ तथा दूसरे प्रकार के तृणों से रहित विशुद्ध, उनके मूल, कन्द ( इन वृक्षों का वर्णन - सिबिय पविमोयणा तक कहना चाहिये ) आदि दशों अंग उत्तम कोटि के थे। इस प्रकार वे वृक्ष रमणीय, मन को प्रसन्न करने वाले, देखने योग्य, मन को अपने में रमा लेने वाले और मन में बस जाने वाले थे ।
The aśoka tree stood in the company of many others which surrounded it. These were tilaka, lakuca, chatropa, Sirisa, saptaparna, dadhiparna, lodhra, dhava, candana, arjuna, nipa, kutaja, kadamba, savya, panasa, dādimba, sāla, täla, tamāla, priyaka, priyangu, puropaga, rāja and nandi. The ground on which these trees stood was also free from kusa and other grass, till delightful to the eyes, pleasant to the mind, immensely attracting.
ते णं तिलया जाव... णंदिरुक्खा अण्णेहिं बहूहिं पउमलयाहिं पागलयाहिं असोअलयाहिं चंपगलयाहिं चूयलयाहिं वणलयाहिं