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कोई सामान्य हर्ष की बात नहीं ? शिक्षित पुत्रों के माता- पिता पुण्यवान और भाग्यशाली गिने जाते हैं । हमारे हाथों में सत्ता है, हमारे विशाल राज्य की बागडोर अपने अधिकार में है। हजारों मनुष्य आज्ञा पालने के लिए हाथ बाँध आगे खड़े रहते हैं, सिर पर छत्र और चामर रहता है, और हमारे राज्यकोष में लक्ष्मी नृत्य कर रही है । इतना ऐश्वर्य होते हुए भी राजकुमार का "विद्याविजय" सुनकर मुझे जो आज अपार हर्ष हो रहा है, वह वर्णनातीत है - यदि यह कह दूँ कि “ऐसा आनन्द न किसी को हुआ न होगा" - तो भी कुछ अतिशयोक्ति नहीं होगी । प्रिये ! राजकुमार, धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र और व्यवहार शास्त्र की परीक्षा में प्रथम उत्तीर्ण हुआ है । उसके अध्यापकों ने मुक्त कण्ठ से उसकी प्रशंसा की और आशीर्वाद दिया । इतना कलाविद होने पर भी वह विनीत, धार्मिक, दयालु और नीतिज्ञ है, यह एक बड़ी विशेषता है ।
प्रिये ! हमारा जन्म, संसार और गृहस्थी जीवन ऐसे सुपुत्र को पाकर धन्य हुआ है । पुत्र के सद्गुणों को देखकर मेरा मन मयूर नृत्य कर रहा है । इसके अतिरिक्त मुझे एक सबसे अपार हर्ष इस बात का होता है कि भविष्य में मेरी प्रजा एक आदर्श राजा को पाकर मुझे भुला सकेगी। सुन्दरी ने प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा
प्राणेश ! आपका कहना बिलकुल सत्य है, परन्तु इसका सारा श्रेय आपको है । क्योंकि अपनी संतान का भविष्य निर्माण, पिता पर ही अवलम्बित है । पिता यदि पुत्र को शिक्षित बनाने के लिए प्रयत्नशील हो तो वह बड़ा ही ज्ञानी और कलाकार बन सकता है । अपनी प्यारी संतान को शिक्षारूपी अमृत पान कराने वाला पिता, उसके पालन पोषण से भी अधिक उपकार करता है । महाराजा ने हँसते-हँसते कहा :
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"सुभगे ! परन्तु इसमें मुझ से कहीं अधिक तुम्हारा उत्तरदायित्व है । बचपन की शिक्षिका तुम्हीं हो। राजकुमार में विवेक, विनय, नम्रता आदि गुणों को पैदा करने वाली तुम्हीं हो। तुम्हारी गोदी में खेलते खेलते जो गुण राजकुमार ने प्राप्त
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