Book Title: Uttamkumar Charitra Author(s): Narendrasinh Jain, Jayanandvijay Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti View full book textPage 9
________________ बन जाता है । संसारी प्राणी यदि इस सांसारिक जीवन को सफल करना चाहें तो इस संसार से भी उन्हें बहुत कुछ आनन्द प्राप्त हो सकता है। संसार समुद्र के मंथन से यदि विष निकलता है तो अमृत भी अवश्य निकलता है। इस प्रकार विचार मग्न हो जाने से उस प्रौढ़ा रमणी के मुखमण्डल पर आनन्द की आभा झलकने लगी । परन्तु इसी समय “जय हो, महाराजाधिराज की जय हो," यह आवाज सुनकर वह उसी समय वहाँ से उठकर आंगन में चली गयी। वहाँ बहुतेरी दासियों ने आकर निवेदन किया, "महाराणी जी ! सरकार की सवारी आ रही है।" इतने ही में महाराज भी आ पहुँचे । सुन्दरी ने उन्हें सप्रेम अभिवादन किया और वहाँ से वे दोनों महल की चन्द्रशाला में चले गये। ___दोनों दम्पती चन्द्र भवन में बैठकर गंगा के नैसर्गिक मनमोहक द्रश्य निरखने लगे।सुन्दरी ने आनन्द विभोर होकर पूछा :_ "प्राणनाथ ! आपने राजकुमार के विषय में कोई हर्ष सम्वाद सुना है ?" "हाँ, सुना तो है ! मैं समाचार सुनाने की इच्छा से ही तुम्हारे पास आया हूँ ! परन्तु प्रिये ! यह बतलाओ कि तुम्हें यहशुभ संवाद किसने कहा?" राजा ने पूछा। | सुन्दरी ने मुस्कराते हुए कहा :- क्षणपूर्व वह विनीत कुमार मेरे पास आया था और उसके मित्र ने यह बात उसके समक्ष मुझे कह सुनाई थी । प्यारे ! आपके आने के पूर्व मैं प्रसन्न चित्त हो यही विचार कर रही थी और यह सुन्दर संसार दुःख का भण्डार होते हुए भी मैं उसे सुख का सागर मान रही थी । महाराजा ने अभिनन्दन प्रदान करते हुए कहा : "प्रिये ! मैं भी यही विचार कर रहा था । इस संसार चक्र में परिवर्तन से सुख और दुःख दोनों उत्पन्न होते हैं, किन्तु जब सुख का उदय होता है, तब दुःख का और जब दुःख का उदय होता है तब सुख का स्मरण होता है । अपना एकाकी कुमार समस्त कलाओं में प्रवीण हो गया और परीक्षा के समय प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ है।इसके समान अन्य आनन्द और क्या?" अपनी सन्तती विद्वान, विनयी, विवेकी और कला कुशल हो, यहPage Navigation
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