________________
के स्वाद से उन्मत्त कोकिला पंचम स्वर से श्रोताओं के कानों को अत्यन्त आनन्द पहुँचा रही थी।
इसी पुष्पवाटिका में राजा नरवर्मा की पुत्री तिलोत्तमा अपनी सहेलियों के साथ बगीचे में टहलने के लिए आयी थी । वहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य का निरीक्षण करती हूई राजकुमारी बगीचे में चारों ओर टहल रही थी । कभी किसी छायादार वृक्ष के नीचे खड़ी हो गयी, तो कही सब सहेलियों के साथ | | रासलीला में भिन्न-भिन्न प्रकार से गाने लग जाती थी । फव्वारे के पास आकर | उसकी रचना को देख-देख कर वह विविध चेष्टाएँ करती थी। कभी वृक्षशाखाओं पर कूद फाँद करनेवाले बन्दरों का तमाशा देखकर मन में प्रसन्न होती थी। कभी कभी आम्रवृक्ष की सघन शाखाओं में बैठी हुई कोयल के मधुर स्वर को श्रवण कर उसके साथ अपने गले के स्वर का मिलान करती थी।
इस प्रकार मनोरंजन करती हुई राजपुत्री तिलोत्तमा आगे बढ़ी, वहाँ वह एक छायादार खीरनी के वृक्ष के नीचे पहुँची । उस वृक्ष के आस-पास नाना प्रकार के फूलों के वृक्ष थे । उन्हें देखकर राजकुमारी और उसकी सखियाँ आपस में बातचीत करने लगीं । “सखी ! देख, इस चमेली के पुष्प कैसे खिले हुए हैं ? मानों आकाश में तारे चमक रहे हों । इस मोगरे के पुष्पों की सुगन्ध कितनी मोहक है ? इस नागकेशर की बनावट कैसी अद्भुत है ? यह कनेर कैसी अच्छी लगती है - परन्तु सुगन्धरहित होने से ऐसा मालूम पड़ता है मानो वह लज्जित हो गयी है। ये जुही, गुलाब और कुन्द के फूल कैसे खिले हैं ? देखो देखो, ये भौरे लालच | में पड़कर मकरन्द में कैसे तल्लीन हो गये हैं ?" | इस तरह बातचीत कर चुकने पर सखियाँ तिलोत्तमा की आज्ञा से उन पुष्पों
को तोड़ेने चली गयी और राजकुमारी उस वृक्ष के ही नीचे खड़ी रही । इसी समय वृक्ष की कोटर में से एक भयङ्कर साँप बाहिर निकला और उसने आकर चुपके से राजपुत्री के पैर में काट खाया। “बहिनो ! दौड़ो, मुझे साँप ने काट लिया।" इस प्रकार चिल्लाकर तिलोत्तमा बेसुध हो पृथ्वी पर गिर पड़ी। उसकी आवाज सुनते
49