Book Title: Uttamkumar Charitra
Author(s): Narendrasinh Jain, Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 81
________________ उस तोते को दरबार में ले आये। ___ वह शुक पक्षी राजा के पास आया, और उसने विनय पूर्वक सिर झुकाकर उन्हें प्रणाम किया । राजा ने भी प्रेम पूर्वक हाथ ऊँचा करके उसका प्रणाम स्वीकार किया। राजा ने पूछा - "पक्षिराज ! आप पक्षी रूप में कौन हैं ? और मेरे जंवाई की | क्या खबर देते हो?" पक्षी ने कहा - "राजन् ! यदि आप प्रतिज्ञा के अनुसार कार्य करने का वचन दें तो मैं आपको आपके जंवाई का सब हाल कहसुनाऊँ।" राजा ने कहा - "यदि तुम उत्तमकुमार की सच्ची सच्ची खबरें दे सकोगे तो मैं अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार कार्य करूँगा ? उत्तम पुरुष कभी भी अपनी प्रतिज्ञा भंग नहीं करते हैं। मैं इसे भली-भाँति समझता हूँ।" ___पक्षी ने कहा - "राजेन्द्र ! आप अपनी प्रतिज्ञा पर अटल रहें । मैं भूत, | भविष्य और वर्तमान का जानने वाला हूँ । यदि मेरा कथन सत्य हो तो आपको अपना राज्य और महेश्वरदत्त को अपनी कन्या मुझे तत्काल देनी पड़ेगी ।" यदि सहस्त्रकला के देने की बात आपके वश की न होतो उसके पिता महेश्वरदत्त को भी यहीं बुला लिया जाय और पहिले तय कर लिया जाय? पक्षी के कथनानुसार राजा ने नौकर को भेजकर सेठ महेश्वरदत्त को वहाँ | बुला लिया । साथ ही दूसरे और भी कई नगर के प्रतिष्ठित लोगों को भी बुलवा भेजा । राजा के पूछने पर महेश्वरदत्त ने अपनी कन्या सहस्त्रकला उसे देने का वचन दिया । ऐसा होने पर राजा ने उस सेठ का अत्यन्त आभार माना । तदनन्तर भरे दरबार में वह चतुर पक्षी मानुषी भाषा में बोला “राजन् ! आपके जवाई उत्तमकुमार का पहिले मैं पूर्व वृतान्त कहता हूँ, सुनो । वह उत्तमकुमार वाराणसी नगरी का राजकुमार है । उसके पिता का नाम मकरध्वज है । वह अपने पिता से लुक-छिप कर विदेश भ्रमण करने के लिए निकला था । अपनी जन्म भूमि वाराणसी से चल कर वह भृगुकच्छ नगर To 74

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