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है । पश्चात् जब भ्रमरकेतु को पुत्री के हरण की बात मालूम हुइ तो उसे अत्यन्त क्रोध आया । उसने मदालसा को बहुत ढूंढा, तलाश भी कराई, परन्तु जब उसका कहीं भी पता नहीं चला तब अन्त में उसने ज्योतिषी को बुलाकर उस विषय में पूछने का निश्चय किया और इसीलिए वह सभा इकट्ठी किये बैठा है । इतने ही में दैव योग से वहाँ एक ज्योतिषी बिना बुलाये ही आ निकला, और राक्षस पति से उसकी भेंट हुई।
ज्योतिषी को देखकर राक्षसराज ने उसे एक उत्तम आसन पर बिठाया । और उससे पूछा - "ज्योतिषीजी ! बताइये, मेरी पुत्री मदालसा कहाँ है ?" ज्योतिषी ने अपने ज्ञान बल से विचार कर कहा – “राक्षसपतिजी ! आपकी पुत्री मदालसा की सारी कथा इस प्रकार है सुनिए । वाराणसी नगरी का राजपुत्र, उत्तमकुमार आपकी पुत्री मदालसा को व्याह कर ले गया है । और वही आपके खजाने में से पाँच रत्न भी ले गया है । इस समय वह मोटपल्ली नगर का राजा हो चुका है। पुण्य के प्रभाव से बड़े बड़े राजा और विद्याधर तक उसकी चरण सेवा करते हैं । महेश्वर दत्त नामक एक करोड़ पति ने अपनी पुत्री और अपनी सारी सम्पत्ति उसको अर्पण कर दी है। उसके पुण्य का प्रभाव उस देश में सर्वत्र फैल रहा है।" |
ज्योतिषी की यह बात सुनकर राक्षस पति को बहुत ही आश्चर्य हुआ । उसके मन में भवितव्यता की बात पर श्रद्धा उत्पन्न हो गयी । कहाँ समुद्र गिरि, कहाँ कुएँ के भीतर का महल, और कहाँ देवताओं के लिए अगम्य कूप द्वार ! इतना होने पर भी वहां पर राजकुमार पहुँच गया, और मदालसा को हरण कर ले गया ! इस प्रकार विचार करता हुआ, भ्रमरकेतु दिग्मूढ़ सा हो गया । मेरी कन्या को कोई भी मनुष्य देहधारी ब्याह नहीं सकता उसका यह विचार अब बदल गया । इसके हृदय में क्षणभर के लिए बड़ी ग्लानि उत्पन्न हुई । अन्त में उसने विचार किया - "जो कुछ होना था, सो हो गया । अब यदि मैं मोटपल्ली नगर में जाकर उससे युद्ध भी | करूं, तो मुझे विजय मिलने की आशा कम है । वह चतुर राजकुमार तंत्र-मंत्र में प्रविण है। उसने अपने बाहु बल से मुझे एकबार परास्त किया था। अब तो वह और